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________________ ११२ भगवती सूत्र अथ शर्क राममामाश्रित्य विकल्प वतुष्टयेन विंशतिभङ्गानाह - ' अहवा एगे सकरप्पभाए, चारि वालुयप्पभाए होज्जा ' अथवा एकः शर्करामभायां चत्वारो वालुकामायां भवन्ति १, ' एवं जहा रयणप्पभाए समं अरिमपुढवीओ चारियाओ तहा सक्करपभाए विसमं चारेयन्त्राओ ' एवं पूर्वोक्तरीत्या यथा रत्नप्रभया समं सह उवरिमपृथिव्यः उत्तरोत्तरपृथिव्यः शर्करामभादयः पृथिव्यश्चारितास्तथा शर्करापभयापि समम् उपरिमाः वालुकाप्रभादयः पृथिव्यश्वारयितव्याः संचारणीयास्तथा च अथवा एकः शर्करापभायां चत्वारः पङ्कमभायां भवन्ति२, अथवा एकः शर्कराप्रमायां चत्वारो धूमम मायाम् ३ अथवा एकः शर्करामभायां चत्वारस्तमायाम् ४, अब सूत्रकार शर्करामभा पृथिवी की प्रधानता से जो २० भंग होते हैं उन्हें कहते हैं - यहाँ पर भी पूर्वोक्त चार ४ विकल्पों को लेकर ही ये २० भंग किये गये हैं (अहवा एगे सकरप्पभाए चन्तारि वालुवप्पभाए होजा) अथवा एक नारक शर्करामभा में उत्पन्न हो जाता है और चार नारक वालुकाप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं १ ( एवं जहा रयणप्पभाए समं उवरिमपुढवीओ वारियाओ तहा सकरप्पभाए वि समं चारेयव्वाओ ) जिस तरह से रत्नप्रभापृथिवी के साथ ६ पृथिवियों का योग करके भंगों का निर्माण किया गया गया है उसी प्रकार से यहां पर भी शर्करापृथिवी के साथ भी ५ पृथिवियों का योग करके भंगों का निर्माण कर लेना चाहियेतथा च अथवा एक नारक शर्कराप्रभा में उत्पन्न होता है और चार नारक पंकमा में उत्पन्न होते हैं २, अथवा एक नारक शर्कराप्रभा में उत्पन्न हो जाता है और चार नारक धूमप्रभा में उत्पन्न होते हैं, હવે સૂત્રકાર શર્કરાપ્રભાની પ્રધાનતાની અપેક્ષાએ ઉપયુક્ત ચારે વિક ૯૫ના જે ૨૦ ભાંગાએ થાય છે તે પ્રકટ કરે છે— 66 अहवा एगे सक्करत्पभाए. चत्तारि वालुयनभाए होज्जा " ( १ ) अथवा તે પાંચ નારકેામાંના એક નારક શર્કરાપ્રમામાં ઉત્પન્ન થાય છે અને ચાર नार वासुप्रलाभां उत्पन्न थाय छे. ( एवं जहा रयणप्पभाए समं उबरिम पुढत्रीओ चारियाओ तहा सकरपभाए वि समं चारेयव्वाओ ) लेवी रीते रत्न - પ્રભા પૃથ્વીની સાથે ૬ પૃથ્વીએને ચૈત્ર કરીને ભાંગાઓનું નિર્માણુ કરવામાં આવ્યું છે, એજ પ્રમાણે શર્કરાપ્રભા સાથે પછીની પ પૃથ્વીઓના ચેગ કરીને ભાંગાઓનું નિર્માણ કરવું જોઇએ. જેમકે—(૨) એક નારક શર્કરાપ્રભામાં અને ચાર નારક ૫'પ્રભામાં ઉત્પન્ન થ ય છે. (૩) અથવા એક નારક શર્કરાપ્રભામાં અને બાકીના ચાર નારક ધૂમપ્રમામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૪) અથવા એક નારક શરાપ્રભામાં અને શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૮
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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