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________________ भगवतीसूत्रे १, द्वौ त्रयः २, त्रयो द्वौ ३, चत्वार एकः ४, इति चत्वारो विकल्पा भवन्ति, तत्र ' एकश्चत्वारः' इति प्रथमविकल्पमाह-' अहवा एगे रयणप्पभाए, चत्तारि सकरप्पभाए होज्जा' अथवा पञ्चसु मध्ये एको नैरयिको रत्नप्रभायां भवति उत्पघते चत्वारश्च शर्करामभायां भवन्ति उत्पद्यन्ते १, 'जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, चतारि अहेसत्तमाए होज्जा ' यावत्-अथवा एको रत्नप्रभायां चत्वारश्च वालुकाप्रभायां भवन्ति २, अथवा एको रत्नप्रभायां, चत्वारश्च पङ्कमभायां भवन्ति ३, अथवा एको रत्नप्रभायां, चत्वारश्च धूममभायां भवन्ति४, अथवा एको रत्नप्रभायां चत्वारस्तु नमायां भवन्ति ५, अथवा एको रत्नप्रभायां चत्वारस्तु अधःसप्तम्यां पृथिवी में भी हो सकते हैं। इस तरह से ये सात भङ्ग होते हैं। तथा पाँच नैरयिकों के द्विकसंयोगी १-४, २-३, ३-२, ४-१ ये चार विकल्प होते हैं। इनमें जो १-४ यह प्रथम विकल्प है उसकी अपेक्षा से सूत्रकार कथन करते हैं । (अहवा-एगे रयणप्पभाए चत्तारि सकरप्पभाए होजा) पांच नरकों में से एक नारक रत्नप्रभा पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है और चार नारक शर्कराप्रभापृथिवी में उत्पन्न हो जाते हैं (जाव अहवा रयणप्पभाए चत्तारि अहे सत्तमाए होजा) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में उत्पन्न हो जाता है और चार नारक वालुकाप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं २, अथवा-एक नारक रत्नप्रभा में उत्पन्न हो जाता है और चार नारक पंकप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं ३, अथवा एक नारक रत्नप्रभा में उत्पन्न हो जाता है और चार नारक धूमप्रभा में उत्पन्न हो जाते है ४, अथवा एक नारक रत्नप्रभा में उत्पन्न हो પાંચ નારકેના દ્રિકસંગી વિક ચાર પ્રકારના છે-રત્નપ્રભામાં ૧ અને બીજી કોઈપણ નરકમાં જ નારક હોય એ ૧-૪ ને વિકલ્પ, એજ प्रमाणे २-3 नी, 3-२ ना, ४-१ न सम या२ प्रा२ना विपी भने છે. હવે ૧-૪ ના વિકલ૫ની અપેક્ષાએ જે ભાંગાઓ બને છે તેમને પ્રકટ ४२१मा आवे छ-( अहवा एगे रयणप्पभाए, चत्तारि सक्करप्पभाए होज्जा) (૧) પાંચ નારકમાંને એક નારક રત્નપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે અને ચાર નારક श४२ प्रभामा ५न्न थाय छे. (जाव अहवो एगे रयणप्रभाए चत्तारि अहे सत्तमाए होज्जा) (२) अथ। ये ना२४ २त्नमाम अने या ना२४ वायुકાપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૩) અથવા એક નારક રનમભામાં અને ચાર નારક પંકપભામાં ઉત્પન્ન થાય છે (૪) અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં અને ચાર નારક ધૂમપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૫) અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં श्री. भगवती सूत्र : ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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