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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०९ उ.३२ सू. ३ भवान्तरप्रवेशनकनिरूपणम्
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नैरयिको रत्नपभायाम् , एकः पङ्कप्रभायाम् , एकस्तमायाम् , एकोऽधः सप्तम्यां भवति१९। 'अहवा एगे रयणप्पभाए, एगेधूमप्पभाए, एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा ' अथवा एको रत्नप्रभायाम्, एको धूमप्रभायाम् , एकस्तमायाम् , एकोऽधःसप्तम्यां भवति २० । ' अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा' अथवा एकः शर्करामभायाम् , एको वालुकामभायाम् , एकः पङ्कप्रभायाम् , एको धूमप्रभायां भवति २१ । ‘एवं जहा रयणप्पभार उपरिमाओ पुढीओ चारियाओ तहा सकरप्पभाए विउवरिमाओ चारेयवाओ' एवं पूर्वोक्तरीत्या यथा रत्नप्रभयाः उपरिमा अन्तिमाः पृथिव्यः उत्तरो(अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक पंकप्रभा में, एक नारक तमः प्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है १९, (अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए एगे अहे सत्तमाए होज्जो ) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक धूमप्रभा में, एक नारक तमः प्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है २०, (अहवा एगे सकरप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होजा) अथवा एक नारक शर्करापभा में, एक नारक वालुकाप्रभा में, एक नारक पंकप्रभा में और एक नारक धूमप्रभा में उत्पन्न हो जाता है २१, (एवं जहा रयणप्पभाए, उवरिमाओ पुढवीओ चारियाओ तहा सकरप्पभाए वि उवरिमाओ चारियव्वाओ) इस तरह जैसा रत्नप्रभा पृथिवी का योग आगे २ की पृथिवियों के साथ किया गया है उसी प्रकार से शर्करा "अहवा एगे रयणप्रभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा" (૧૯) અથવા એક રત્નપ્રભામાં, એક પંકપ્રભામાં, એક તમ પ્રભામાં અને એક नीय सातभा २४i डाय छे. “ अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, ये तमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा” (२०) 424 मे २त्नमामा, भ પ્રભામાં, એક તમ પ્રભામાં અને એક નીચે સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. " अहवा एगे सकरप्पभाए, एगे वालयप्पभाए एगे पंकप्पभाए, एगे घूमप्पभाए होजा" (२१) मथ। मे शराप्रमामा, मे, पानामां से ५४. प्रमामा भने से धूमप्रमामा उत्पन्न थाय छे. “ एवं जाव रयणप्पभाए उस. रिमाओ पुढवीओ चारियाओ, तहा सकरप्पभाए वि उवरिमाओ चारियवाओ" જે પ્રમાણે રત્નપ્રભાને પછીની પૃથ્વીઓ સાથે યોગ કરીને વિકલ્પ કહેવામાં
श्री. भगवती सूत्र : ८