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________________ ९० भगवतीसूत्रे प्रभायाम् , एकः पङ्कप्रभायाम् , एकोऽधःसप्तम्यां भवति ७ । ' अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एकः शर्करामभायाम् , एको धूमप्रभायाम् , एकस्तमायां भवतिभा 'अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए' एगे धूमप्पभाए. एगे अहेसत्तमाए होज्जा ' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एकः शर्क राप्रभायाम् , एको धूमप्रभायाम् , एकोऽधःसप्तम्यां भवति ९ । ' अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा ' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एकः शर्कराप्रभायाम् , एकस्तमायाम् , एकोऽधः सप्तम्याम् भवति १० । ' अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा' अथवा नारक पंकप्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है ७, (अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा ८) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रभा में एक नारक धूमप्रभा में और एक नारक तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाता है ८, (अहवा-एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रभा में, एक नारक धूमप्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है ९, (अहवा-एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए होजा) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक नारक तमः प्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी में उत्पन्न हो जाता है १०, (अहवा-एगे रयणप्पभाए एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए " अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे धूमप्पभाए एगे तमाए होज्जा" (4) अथवा से ना२४ २त्नप्रभाभां, ये राप्रमाभां, मे धूम. प्रभामा भने से तमामामा डाय छे. “अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा" (6) Aथा में રત્નપ્રભામાં, એક શર્કરા પ્રભામાં, એક ધૂમપ્રભામાં અને એક નીચે સાતમી न२४मां -थाय छे. “ अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा ” (१०) २५५१ मे २त्नमामा, मे શર્કરામલામાં, એક તમ પ્રભામાં અને એક નીચે સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય छ. “ अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयल्पभाए, एगे पंकप्पभाए एगे धूम पभाए होज्जा" (११) मथा मे नमामा, ४ पासुमामा, ये ५४. श्री. भगवती सूत्र : ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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