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________________ ७४० भगवतीसूत्रे क्षया विशेषमाह-' नवरं अभिलावो सोच्वेति, सेसं तं चेव निरवसेसं जाव' नवरम् अश्रुखा विषयकाभिलापापेक्षया विशेषस्तु श्रुत्वाविषयकाभिलापोऽत्र वक्तव्यः, शेषं तदेव पूर्वोक्तमेव निरवशेषं वक्तव्यम् यावत्-यस्य खलु जीवस्य ज्ञानावरणीयानां कर्मणां क्षयोपशमः कृतो भवति, यस्य खलु दर्शनावरणीयानां कर्मणां क्षयोपशमः कृतो भवति, यस्य खलु धर्मान्तरायिकाणां कर्मणां क्षयोपशमः कृतो भवति, यस्य चारित्रावरणीयानां कर्मणां क्षयोपशमः कृतो भवति, यस्य यतनावरणीयानां कर्मणां क्षयोपशमः कृतो भवति, यस्य अध्यवसानावरणीयानां कर्मणां क्षयोपशमः कृतो भवति,यस्य आभिनिवोधिकज्ञानावरणीय-श्रुतज्ञानवरणीया-वऽधिज्ञानावरणीके आलापक की जो वक्तव्यता कही गई है, वही वक्तव्यता " श्रुत्वा" इस आलापक में भी कहना चाहिये। किन्तु उस आलापक की वक्तव्यता में और इस आलापक की वक्तव्यता में जो भेद है वह इस प्रकार से है-(नवरं अभिलावो सोच्चे ति-सेसं तं चेव निरवसेसं जाव) कि इस वक्तव्यता में " श्रुत्वा" ऐसा पद रखकर इसका आलापक बनाना चाहिये। बाकी का और सब कथन अश्रुत्वा के आलापक जैसा ही जानना चाहिये । यावत्-जिस श्रुत्वा मनुष्य के ज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम कृत होता है, जिसके दर्शनावरणीय कर्मो का क्षयोपशम किया हुआ होता है, जिसके धर्मान्तरायिक कर्मों का क्षयोपशम किया गया है, जिसके चारित्रावरणीय कर्मों का क्षयोपशम किया हुआ होता है, जिसके यतनावरणीय कर्मों का क्षयोपशम होता है, जिसके अध्यवसानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम होता है, जिसके अभिनियोधिक ज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम होता है, जिसके श्रुतज्ञानावरणीय कर्मों પકમાં જેવી વક્તવ્યતા આગળ કરવામાં આવી છે, એવી જ વક્તવ્યતા “શ્રવા” વિષયક આ આલાપકમાં પણ થવી જોઈએ. પરંતુ તે આલાપકની વક્તવ્યતામાં અને આ આલાપકની વક્તવ્યતામાં આ પ્રમાણે ભેદ ગ્રહણ કર જોઈએ. (नवर अभिलावो सोच्चे ति-सेसं त चेव निरवसेसं जाव) ते मातापीमा ज्यां " असोच्या-५ श्रुत्वा" ५। प्रयोग ४२॥मा मान्य डाय, त्यो । माता५मा “ सोच्चा-श्रुत्वा " पहनी प्रयोग या नधो. माडीतुं समस्त ४थन मश्रुत्वाना मा५ प्रमाणे समा. म....... श्रुत्वा मनुष्यना [( કેવલી આદિ પાસે કેવલી પ્રરૂપિત ધર્મનું શ્રવણ કરનાર મનુષ્યના) જ્ઞાના. વરણીય કર્મોને ક્ષપશમ થયે હોય છે, જેના દર્શનાવરણીય કર્મોને ક્ષપશમ થયે હેય છે, જેના તનાવરણીય કર્મોને ક્ષપશમ થયો હોય છે, જેના અધ્યવસાયાવરણીય કર્મોને ક્ષયે પશમ થયે હોય છે, જેના આભિનિ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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