________________
७२०
भगवतीसूत्रे देशभागे सार्धद्वयद्वीपसमुद्रस्य एकप्रदेशे भवति, गौतमः पृच्छति- ते णं भंते ! एगसमएणं केवड्या होज्जा ? ' हे भदन्त ! ते खलु अश्रुत्वा केवलिनः एकसमये कियन्तो भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा ! जहण्णेणं एको वा, दो वा, तिन्नि वा, उक्कोसेणं दस ' हे गौतम ! ते केवलिनः जघन्येन एकसमये एको वा द्वौ वा, त्रयो वा भवन्ति, उत्कृष्टेन तु एकसमये दश भवन्ति । उपसंहरअढाई द्वीप में दो समुद्र में-इनके एकदेश में होता है। तात्पर्य कहने का यह है कि अश्रुत्वा केवली ऊर्ध्वमध्य और अधः इन तीनों लोकों में होता है। अप्रलोक में लब्धि के निमित्त से या संहरण के निमित्त से वह वहां हो सकता है। मध्यलोक में भी वह स्वभावतः १५ कर्मः भूमियों में होता ही है। रही अढाई द्वीपसमुद्रों की बात-क्यों कि इतना ये सब स्थान कर्मभूमि से भी सम्बन्ध रखता है-अतः इतने स्थान में भी इसका अस्तित्व संहरण की अपेक्षा से हो सकता है। अधोलोक में खड्डे आदि स्थानों में तो यह पाया ही जाता है-रही पाताल आदि स्थानरूप अधोलोक की बात-सो वहां पर भी इसका आस्तित्व-संहरण की अपेक्षा से बन सकता है। ___अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(तेणं भंते ! एगसमएणं केवइया होज्जा) हे भदन्त ! एक समय में कितने अश्रुत्वा केवली हो सकते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं एको वा, दो वा, तिनि वा) एक समय में अश्रुत्वा केवली कम से कम હોય છે ઉર્વલોકમાં લબ્ધિના કારણે અથવા સંહરણને કારણે તેઓનું અસ્તિત્વ સંભવી શકે છે. મધ્યલેકમાં (તિર્યકમાં) તેઓ સ્વાભાવિક રીતે ૧૫ કર્મ ભૂમિએમાં તે હોય જ છે. હવે રહી અઢી દ્વીપસમુદ્રોની વાત-કારણ કે આ બધાં સ્થાને કર્મભૂમિ સાથે પણ સંબંધ રાખે છે, તેથી એટલાં સ્થાનમાં પણ તેમનું અસ્તિત્વ સંહરણની અપેક્ષાએ સંભવી શકે છે. અધેલકમાં ગત (ખાડા) આદિ સ્થાનમાં તે તેમનું અસ્તિત્વ હોય જ છે, પણ પાતાલ આદિ સ્થાનરૂપ અધેલકમાં પણ સંહરણની અપેક્ષાએ તેમનું અસ્તિત્વ સંભવી શકે છે.
गौतम स्वाभानी प्रश्न-( से णं भंते ! एग समएणं केवइया होज्जा ?) હે ભદન્ત ! એક સમયમાં કેટલા અથવા કેવલી સંભવી શકે છે?
महावीर प्रभुना उत्तर-" गोयमा !" हे गौतम ! ( जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिन्नि वा) मे समयमा माछामा माछा मे मथवा मे अथवा ३] मश्रुत्वा पक्षी ५ श , भने “ उक्कोसेणं दम " पधारेमा धारे
श्री.भगवती सूत्र : ७