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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी०।०९३०३१ सू०३अश्रुत्वावधिशानिनो लेश्यादिनिरूपणम् ७०५ हिंतो तिरिक्खजोणियभवग्गहणेहितो अप्पाणं विसंजोएई' अनन्तेभ्यः तिर्यग्योनिकभवग्रहणेभ्यः आत्मानं विसंयोजयति विमोचयति, ' अणंतेहितो देवभवग्गहणे हिंतो अप्पाणं विसंजोएइ ' अनन्तेभ्यो देवभवग्रहणेभ्यः आत्मानं विसंयोजयति 'जाओ विय से इमाओ नेरइय-तिरिक्वजोणिय-मणुस्स-देवगइनामाओ चत्तारि उत्तरपयडीओ' याः अपि च ताः इमाः नैरयिक-तिर्यग्योनिक-मनुष्यदेवगतिनाम्न्यः, एतदभिधानाश्चतस्रः उत्तरप्रकृतयो नामकर्माभिधानायाः मूलप्रकृतेरुत्तरभेदभूताः सन्ति — तासिं च णं उवग्गहिए अणंताणुबंधी कोहमाणमायालोभे खवेइ ' तासां च खलु चतसृगां नैरयिकगत्याधुत्तरप्रकृतीनाम् चशब्दातिरिक्खजोणियभवग्गहणेहितो अप्पाणं विसंजोएइ) अनन्त तिर्यच भवग्रहणों से अपने को छुड़ालेता है, अर्थात् वह इन अध्यवसायों के प्रभाव से मर कर तिर्थचगति में नहीं जाता है, (अणंतेहिं मणुस्सभवग्गहणेहितो अप्पाणं विसंजोएइ) वह अनन्त मनुष्य सम्बन्धीभवनहां से अपनी अस्मा को छुड़ा लेता है (अणंतेहिं देवभवग्गहणेहितो अप्पाणं विसंजोएइ) अनन्त देवसंबंधी भवग्रहणों से अपने को छुड़ा लेता है। (जाओ वि य से इमाओ नेरइयतिरिक्खजोणियमणुस्स देव गहनामाओ चत्तारि उत्तरपयडीओ) तथा इसकी जो ये नरक, तिर्थच, मनुष्य और देवगति नान की चार मूल नामकर्म की उत्तरप्रकृतियां हैं सो (तासि च णं उवग्गहिए . ) इन प्रकृतियों के तथा (च) शब्द से गृहीत अन्य प्रकृतियों के औपग्रहिक-आधारभूत ( अणंताणु गहणेहितो अप्पाणं विसंजोएइ) सनत तिय माथी पोताना सामान भयावी से छे. ( अणतेहि मणुस्सभवग्गहणेहि तो अपाणं विसंजोएइ) मनत मनुष्य समधी भडणेथी पाताने भुत ४२ छे, (अण तेहिं देवभवग्गहणेहि तो अप्पाणं विसंजोएइ) मन मानत वसधा सवडाथी पोताना मात्मान મુક્ત કરી દે છે. એટલે કે આ અધ્યવસાયોના પ્રભાવથી તે જીવ મરીને નારક, તિય ચ, મનુષ્ય કે દેવગતિમાં જ નથી. (जाओ वि य से इमाओ नेरइयतिरिक्खजोणिय मणुसदेवगइनामाओ चत्तारि उत्तरपयडीओ) तथा तेनी रे २४, तिय"य, मनुष्य भने गति नामनी या२ भूख नभनी उत्तर प्रतिये। छ, “ तासि च णं उवग्गहिए" તે પ્રકૃતિના તથા “વપદથી ગૃહીત અન્ય પ્રકૃતિના ઔપગ્રહિક (माधारभूत) ( अणताणुबंधी कोहमाणमायालोभे खवेइ ) अनन्तातुंमधा औध, भान, माया भने बेस३५ पाथाना क्षय ४२ छ, (अणताणुबधी कोहमाण भ०८९ श्री.भगवती सूत्र : ७
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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