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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श०९उ. ३१ सू०३ अश्रुत्वाऽवधिज्ञानिनो लेश्यादिनिरूपणम् ७०१ दको भवति ? किं पुरुषवेदको भवति ? किं वा नपुंसकवेदको भवति ? किंवा पुरुष नपुंसक वेदको भवति? भगवानाह - 'गोयमा ! नो इत्थी वेवए होज्जा' हे गौतम! स प्रतिपन्नावधिज्ञानःनो स्त्रीवेदको भवति स्त्रिया एवंविधस्य आतापनादेः स्वभावतवाभावात् किन्तु पुरिसवेयर होज्जा' स पुरुषवेदको भवति नो नपुंसगवेयए होज्जा' नो नपुंसकवेदको भवति, पुरिसनपुं सगवेयए वा होज्जा ' पुरुषनपुंसक वेदको वा भवति, वर्धितकत्वादि के सति जायमानो नपुंसकः पुरुषनपुंसको " यदि विभंगज्ञान का परिणमन जब अवधिज्ञान रूप से वेद अवस्था में ही होता है तो कौनसी वेद अवस्थामें होता है ? क्या स्त्रीवेद अवस्था में होता है, या पुरुषवेद अवस्था में होता है ? या नपुंसकवेद अवस्था में होता है ? या (पुरिसनपुंसग वेयए होज्जा ) या पुरुष नपुंसकवेद अवस्था में होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- (नो इस्त्रीवेयए होज्जा ) हे गौतम! विभंगज्ञान का अवधिज्ञानरूप से परिणमन होता है, उस अवस्था में वह जीव स्त्रीवेदवाला नहीं होता है, क्यों कि स्त्रीयों में इस प्रकार की आतापना आदि का स्वभाव से ही अभाव होता है, (पुरिस वेयए होज्जा ) अतः ऐसा जीव पुरुष वेदवाला ही होता है। (नो नपुंसगवेयए होज्जा ) वह नपुंसक वेदवाला नहीं होता है किन्तु हां (पुरिस नपुंगवेधए वा होज्जा ) ऐसा जीव पुरुष नपुंसक वेदवाला भी हो सकता है। जो मनुष्य कृत्रिम उपायों से नपुंसक बना दिया जाता है वह (पुरुष नपुंसक ) कहा गया है ( से णं भंते कि सकसाई होज्जा, गौतम स्वाभीने प्रश्न - ( जइ सवेदर होजा किं इत्थीवेयए होज्जा, पुरिसवेयर होज्जा, नपुंरंसगवेयए होज्जा, पुरिसनपुर सगवेयए होज्जा ? ) डे ભદન્ત ! જો વિભ’ગજ્ઞાનનું અવધિજ્ઞાનરૂપે પરિણમન વેદસહિતની અવસ્થામાંજ થાય છે, તે કેવા પ્રકારની વેઢ અવસ્થામાં તે પરિણમન થાય છે ? શું સ્ત્રીવેદ અવસ્થામાં થાય છે, કે પુરુષવે અવસ્થામાં થાય છે, કે નપુ સકવેદ અવસ્થામાં થાય છે, કે પુરુષ નપુસકવેદ અવસ્થામાં થાય છે ? ( જે પુરુષને કૃત્રિમ ઉપાચેાથી નપુÖસક ખનાવી દીધા હાય છે, એવા પુરુષને પુરુષનપુસક કહે છે. ) महावीर प्रभुना उत्तर - ( नो इत्थीवेयए होज्जा ? ) न्यारे विलज्ञाननुं અવિધજ્ઞાનરૂપે પરિણમન થાય છે, ત્યારે તે જીવ સ્રીવેદવાળા હાતા નથી, કારણ કે સ્ત્રીઓમાં ઉપયુક્ત વધુ વેલી આતાપના આદિના સ્વભાવથી જ અભાવ होय छे “ पुरिसवेयए होज्जा " तेथी सेवा व पुरुषवेदवाणी होय छे. "नो नपुंगवेयए होज्जा " ते नपुंसा वेदवाणी पशु होतो नथी, पाशु पुरुषन सह बेहवाग सलवी राठे छे. 66 पुरिसनपुंगवेयर वा होज्जा " सेवा श्री भगवती सूत्र : ৩
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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