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________________ - - % DE प्रमेयचन्द्रिका टीकाश०९७० ३-३०सू० १ एकोहकादिद्वीपनिरूपणम् ६०९ दीवे मंदरस्स पब्वयस्स दाहिणेणं ' हे गौतम जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य मेरोः पर्वतस्य दक्षिणे दक्षिणादिशि 'चुल्लाहिमवंतस्स वासहरपव्ययस्स पुरथिमिल्लाभो चरिमंताओ' चुल्ल हिमवंतो वर्ष धरपर्वतस्य पौरस्त्यात् पूर्वदिशायाः चरमान्तात् सीमान्तप्रदेशात् आनन्तरम् ' लवणसमुदं उत्तरपुरस्थिमेणं ' लवणसमुद्रम् उत्तरपौरस्त्ये उत्तरपूर्वयोरन्तराले ईशानकोणे इत्यर्थः । तिन्नि जोयणसयाई ओगाहित्ता' त्रीणि योजनशतानि अवगाह्य-उलङ्घय 'एत्थ णं दाहिणिल्लाणं एगोरुयमणुस्साणं एगो. रुयदीवे नाम दीवे पण्णत्ते ' अत्र खल्लु लवणसमुद्रस्य ईशानकोणे त्रियोजनशतावगाहनस्थाने दाक्षिणात्यानां दक्षिण दिग्भवानाम् एकोरुकमनुष्याणाम् एकोरुकद्वीपो नाम द्वीपः प्रज्ञप्तः ' से णं गोयमा ! तिनि जोयणसयाई आयामविक्खंभेणं णव -एकोरुक मनुष्योंका एकोरुक द्वीप नामका द्वीप कहां पर कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा ) हे गौतम ! (जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं) जम्बूद्वीप नामके द्वीप में स्थित प्लुमेरु पर्वत की दक्षिणदिशा में वर्तमान (चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ) चुल्ल (क्षुद्र ) हिमवान् वर्षघर पर्वत के पूर्वदिशा संबंधी सीमान्तप्रदेश से आगे ईशानदिशा में (तिनि जोयणसयाई ओगाहित्ता) लवणममुद्र को तीनसौ योजन उल्लङ्घन करके अर्थात् आगे जाकरके ( एत्थ णं दाहिणिल्लाणं एगोरुयमणुस्साणं एगोरुयदीवे नाम दीवे पण्णत्ते) ठीक इसी जगह पर दक्षिण दिग्वासी एकोरुक मनुष्य एकोरुक द्वीप नामका द्वीप कहा गया है। अर्थात् लवणसमुद्र की ईशानदिशा में तीन सौ योजन तक उस लवणसमुद्र में आने जाने के बाद एकोरुक मनुष्यों का जो कि दक्षिणदिग्यासी हैं एकोरुक नामका द्वीप है। ( से णं गोयमा! तिनिजोयपासयाई आयामविक्खंभेणं णध महावीर प्रभुने। उत्तर-" गोयमा !” गौतम ! ( जंबुद्दोवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं) भूरी५ नामना द्वीपमi मासा सुभे२ 'तनी दक्षिण दिशामा मासा (चुल्लहिमवंतस्स वासहरपवयस्स पुरथिमिल्लाओ चरि. मंताओ) युसस (क्षुद्र) भिवान् ५२ पतनी पूर्व सीमान्त प्रशथी भाn ndi शान Hi “ तिन्नि जोयणसयाई ओगाहित्ता) पण सभु. द्रथा भाग rai ( एत्वणं दाहिणिलाणं एगोरुयमणुस्साणं एगोरुयदीवे नाम दीवे पण्णत्ते ) विहिवासी २४ मनुष्यान। मे।२४ नामनी दी५ मावे છે. એટલે કે લવણ સમુદ્રની ઈશાન દિશામાં ૩૦૦ જનનું અંતર ચાલીને લવણ સમુદ્રમાં આગળ જતાં દક્ષિણદિશ્વાસી એકેક મનુષ્યને ( યુગલ भनुष्यानी ) औ२४ नामन द्वीप साव छ. (से णं गोयमा ! तिनि जोयण श्री भगवती सूत्र : ७
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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