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________________ ६०० मगवतीसूत्र गौतमः पृच्छति 'पुक्खरोदे णं भंते ! समुहे केवइया चंदा पभासिसु वा ३। ?' हे भदन्त ! पुष्करोदे खलु समुद्रे कियन्तश्चद्राः पाभासिषत वा, प्रभासन्ते वा, प्रभासिष्यन्ते वा ? भगवानाह-' एवं सम्वेसु दीवसाद्देसु जोइसियाणं भाणियव्य' हे गौतम ! एवं वक्ष्यमाणरीत्या सर्वेषु द्वीपसमुद्रेषु ज्योतिष्काणां यथासम्भवं संख्याताअसंख्याताश्व चन्द्रादयः प्रामासिषत वा इत्यादि भणितव्यम् , तथा चेत्यम् -'पुक्खरोदे णं भंते ! समुद्दे केवइया चंदा पभासिंसु वा ३ ?' हे भदन्त ! पुष्करोदे खलु समुद्र कियन्तश्चन्द्राः प्रामासिषत वा, प्रभासन्ते वा, प्रभासिषन्ते वा ? अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(पुखरोदे ण भंते ! समुद्दे केवड्या चंदा पभालिंसु वा ? ) हे भदन्त ! पुष्करोद समुद्र में कितने चन्द्रमाओं ने प्रकाश किया है ? अब कितने चन्द्रमा प्रकाश करते हैं ? और आगे भी वहां कितने चन्द्रमा प्रकाश करेंगे ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-( एवं सम्वेसु दीवसमुद्देसु जोइसियाणं भाणियव्वं ) हे गौतम ! समस्त द्वीप समुद्रों में ज्योतिष्कगण के यथासंभव मख्यात असंख्यात चन्द्रमादिकों ने पहिले प्रकाश किया है, अब भी वे वहां पर प्रकाश करते हैं और आगे भी वे वहाँ पर प्रकाश करेंगे इत्यादिरूप से कहना चाहिये। जीवाभिगमसूत्र में ऐसा ही कहा है-(पुक्खरोदे णं भंते ! समुद्दे केवइया चंदा पभासिंस्तु वा ३१) गौतम ने प्रभु से ऐसा ही पूर्वोक्तरूप में पूछा है कि-हे भदन्त ! पुष्करोद समुद्र में कितने चन्द्रमाओं ने पहिले प्रकाश किया है, अब भी वहां पर कितने चंद्रमा प्रकाश करते हैं-तथा आगे भी वहां पर कितने चन्द्रमा प्रकाश करेंगे? इत्या गौतम स्वाभानी प्रश्न-( पुक्खगेदेण भते ! समुहे केवइया चंदा पभा. सिसवा १) महन्त ! ४१४ समुद्रमा सायन्द्रमा भूतभा प्रशता હતા, વર્તમાનમાં પ્રકાશે છે અને ભવિષ્યમાં પ્રકાશશે? महावीर प्रभुने। उत्तर-( एवं सव्वेसु दीवसमुद्देसु जोइसियाणं भाणियव्वं) હે ગતમ! સમસ્ત દ્વીપ સમુદ્રોમાં જતિષ્કગણના યથાસંભવ સંખ્યાત અસંખ્યાત ચન્દ્રમા આદિ કે એ ભૂતકાળમાં પ્રકાશ આપે હતો, વર્તમાનમાં પણ તેઓ ત્યાં પ્રકાશ આપે છે અને ભવિષ્યમાં પણ આપશે. જીવાભિગમ સૂત્રમાં આ વિષયને અનુલક્ષીને એવું કહ્યું છે– गौतम स्वामीना प्रश्न-( पुक्खोदेणं भंते ! समुहे केवइया चंदा पभा. सिवा ३१) महन्त ! पु०४३४ समुद्रमा ५i seal यन्द्रमा प्रशता હતા? વર્તમાનકાળે ત્યાં કેટલા ચન્દ્ર પ્રકાશે છે ? ભવિષ્યમાં ત્યાં કેટલા ચન્દ્ર પ્રકાશશે ? ઇત્યાદિ પ્રશ્નો અહીં ગ્રહણ કરવા જોઈએ. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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