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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. ८ सू. ३ कर्मबन्धस्वरूपनिरूपणम् ५३ ___ अथ प्रतिपद्यमानकापेक्षयाऽऽह-'पडिवज्जमाणए पडुच्च मणुस्सो वा बंधइ?।' प्रतिपधमानकान् प्रतीत्य आश्रित्य तु ऐपिथिकं कर्म मनुष्यो वा बध्नाति १, अयमाशयः-ऐयोपथिककर्मबन्धस्य प्रथमसमयवर्तिनः केवलोत्पत्तौ प्रथमसमय इत्यर्थः मनुष्याः प्रतिपद्यमानका उच्यन्ते, एषां च विरहसंभवात् एकदा मनुष्यश्च मनुप्याश्चैकैकयोगे एकत्व-बहुत्वाभ्यां चत्वारो विकल्पाः, तथा द्विकसंयोगेऽपि चत्वारो विकल्पाः, एवंरीत्या सर्वे अष्टौ विकल्पा भवन्ति, इत्यभिप्रायेणाह-'मणुस्सो वा' इत्यादि । अथ एकैकसंयोगे द्वितीयादिविकल्पानाह- मणुस्सी वा बंधइ २' पतिकर्म का बंध होता है दूसरों को नहीं होता है, इसी अभिप्राय को लेकर सूत्रकार ने 'मणुस्सा य मणुस्सीओ य" ऐसा कहा है।
अब सूत्रकार प्रतिपद्यमानक जीवोंकी अपेक्षासे ऐसा कहते हैं-पडिवज्जमाणए पडुच्च मणुस्सो वा बंधई' कि प्रतिपद्यमानक जीवोंको आश्रित करके तो ऐर्यापथिक कर्म का बंध मनुष्य करता है, इसका आशय ऐसा है-ऐयोपथिक कर्म बंध के प्रथम समय में जो वर्तमान हों-अर्थात् वीतराग अवस्था की प्राप्ति के प्रथम समय में जो मौजूद हों-ऐसे मनुष्य प्रतिपद्यमानक कहलाते हैं इनका विरह संभवित होने से एक समय में एक मनुष्य और अनेक मनुष्य इनके एक एक के योग में एकत्व
और बहुत्व को लेकर चार विकल्प होते हैं। तथा द्विक संयोग में भी चार विकल्प होते हैं। इस रीति से सब आठ विकल्प होते हैं । इसी अभिप्राय को लेकर सूत्रकर ने ऐसा कहा है 'मणुस्मो वा' इत्यादि । अब एक एक के संयोग में अन्य द्वितीयादि विकल्पों को सूत्रकार कहते हैं-'मणुस्सी वा बंध' २ प्रतिपद्यमानक की अपेक्षा मनुष्यस्त्री ऐा. मणुस्सीओ य ) " मनुष्यो भने मनुष्य स्त्री. १४ अर्या५थि४ ४ मांधे छ."
वे सूत्रा२ प्रतिपयमाननी अपेक्षा नीचे प्रमाणे ४ छे-(पडिवज्जमाणए पडुच्च मणुस्खो वा बधइ ) (१) प्रतिपयमान वानी अपेक्षा मर्याપથિક કર્મને બંધ મનુષ્ય કરે છે. ઐર્યાપથિક કર્મબંધના પ્રથમ સમયમાં જે વર્તમાન (મેજૂદ) હેય-એટલે કે વીતરાગ અવસ્થાની પ્રાપ્તિના પ્રથમ સમ. યમાં જે મજદ હેય-એવાં મનુષ્યને પ્રતિપદ્યમાનક કહે છે. તેમને વિરહ સંભવિત હોવાથી એક સમયમાં એક મનુષ્ય અને અનેક મનુષ્યના એક એકના
ગમાં એકત્ર અને મહત્વની અપેક્ષાએ ચાર વિકલ્પ બને છે તથા દ્વિક સંગથી પણ ચાર વિક૯પ બને છે. આ રીતે કુલ આઠ વિકલ્પ નીચે પ્રમાણે બને છે– (૧) પ્રતિપદ્યમાનની અપેક્ષાએ મનુષ્ય (એક વચનમાં) ઐયંપથિક भनि। म५ ४२ छे. (२) “ मणुस्सी वा बधइ " प्रतिपयमानना अपेक्षा
श्री.भगवती सूत्र : ७