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________________ ५२२ भगवती सूत्रे 6 रायिकं च, गौतमः पृच्छति - नेरइयाणं भंते ! कइ कम्म पगडीओ पण्णत्ताओ ?' हे भदन्त ! नैरयिकाणां कति कर्मप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह - ' गोयमा ! अट्ट' हे गौतम ! नैरयिकाणाम् अष्ट कर्म प्रकृतयः प्रज्ञप्ताः ताश्च प्रतिपादिता एव एवं सव्वजीवाणं अट्ठ कम्मपगडीओ ठावेयव्वाओ जाव वेमाणियाणं ' एवम् उक्तरीत्या सर्वजीवानाम् अष्ट कर्मप्रकृतयः स्थापयितव्याः - प्रतिपादयितव्या यावत् भवन पति-पृथिवी कायिकाचे केन्द्रिय द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय- चतुरिन्द्रिय- पञ्चेन्द्रिय-तिर्य ग्योनिक - मनुष्य-वानव्यन्तर-ज्योतिषिक-वैमानिकानां चतुर्विंशतिदण्डकपदप्रतिपाद्यानाम् अष्ट कर्मप्रकृतयः प्रतिपादयितव्याः । गौतमः पृच्छति' नाणावर णि अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं - (नेरइया णं भंते! कइ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ) हे भदन्त ! नारक जीवों के कितनी कर्मप्र कृतियां कही गई हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - (गोयमा ! अट्ठ) हे गौतम ! नारक जीवों के आठ कर्मप्रकृतियां कही गई हैं । ( एवं सव्वजीवाणं अट्ठ कम्मपगडीओ ठावेयवाओ जाव वेमाणियाणं ) इसी तरह से समस्त जीवों के आठ कर्मप्रकृतियां हैं ऐसा कथन करना चाहिये । अर्थात् भवनपति, पृथिवीकायिक आदि एकेन्द्रिय जीव, द्वीन्द्रिय जीव, त्रीन्द्रिय जीव, चतुरिन्द्रियजीव, पञ्चेन्द्रियजीव, मनुष्य, वानव्यन्तर, ज्योतिषिक, और वैमानिक इन चौवीसदण्डक प्रतिपाथ जीवों के ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मप्रकृतियां कही गई हैं । अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं (नाणावर णिजस्स णं भंते! कम्मस्स केवइया अविभागपलिच्छेया पण्णत्ता ) हे भदन्त ! गोतम स्वाभीनो प्रश्न - " नेरइयाण' भरते ! कइ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ ? હૈ ભદ્દન્ત ! નારક જીવાની કેટલી કમ પ્રકૃતિયા કહી છે ? 66 महावीर अलुना उत्तर- " गोयमा ! " हे गौतम ! अट्ठ " नार लवासां आहे आठ उर्भ अधृतियांना सद्भाव होय छे. ( एवं सव्वजीवाण अट्ठ कम्मपगडीओ ठावेयव्बाओ जाव वेमाणियाण ) से प्रभाशे वैभानि તેવા પન્તના સમસ્ત જીવેામાં પણ આઠ કમ પ્રપ્રકૃતિયાના સદ્ભાવ હાય છે. એટલે કે ભવનપતિ, પૃથ્વીકાયિક આદિ એકેન્દ્રિય જીવા, દ્વીન્દ્રિય જીવા, त्रीन्द्रिय लवा, यतुरिन्द्रिय वा यथेन्द्रिय तिर्यय लवा, मनुष्य, वानવ્યન્તર, યાતિષિક, અને વૈમાનિક, આ ચાવીસ દંડક પ્રતિપાદ્ય જીવેાની જ્ઞાનાવરણીય આદિ આઠ ક`પ્રકૃતિયા કહી છે. हवे गौतम स्वाभी महावीर अभुने सेवा प्रश्न पूछे छे डे - ( नाणावर - शिजस्म णं भवे ! कम्मरख केवड्या अविभागपलिच्छेया परणता ? ) हे लहन्त ! श्री भगवती सूत्र : ৩
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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