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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०८ 30 १० सू० ५ लोकाकाशप्रदेशनिरूपणम् ५१३
लोकाकाशप्रदेशवक्तव्यता। इतः पूर्वं परमाण्वादिवक्तव्यता प्रतिपादिता, परमाण्वादयश्च लोकाकाशप्रदेशावगाहिनो भवन्ति, इति तद्वक्तव्यतामाह- केवइया णं भंते' इत्यादि ।
मूलम्--केवइया णं भंते लोगागासपएसा पन्नत्ता ? गोयमा! असंखेज्जा लोगागासपएसा पन्नत्ता, एगमेगस्स णं भंते ! जीवस्स केवइया जीवपएसा पण्णता ? गोयमा ! जावइया लोगागासपएसा, एगमेगस्स णं जीवस्त एवइया जीवपएसा पण्णत्ता ॥ सू० ५॥ __छाया-कियन्तः खलु भदन्त ! लोकाकाशप्रदेशाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! असं. ख्येया लोकाकाशप्रदेशाः प्रज्ञप्ताः । एकैकस्य खलु भदन्त ! जीवस्य कियन्तो जीवप्रदेशाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! यावन्तो लोकाकाशप्रदेशाः, एकैकस्य खलु जीवस्य एतावन्तो जीवप्रदेशाः प्रज्ञप्ताः ॥ मू० ५ ॥
__ लोकाकाशप्रदेश वक्तव्यता 'केवइया णं भंते ! लोगागासपएसा पत्नत्ता' इत्यादि।
सूत्रार्थ-(केवइया णं भंते ! लोगागासपएसा पन्नत्ता) हे भदन्त ! लोकाकाश के प्रदेश कितने कहे गये हैं ? ( गोयमा) हे गौतम ! (असं. खेजा लोगागासपएसा पनत्ता) लोकाकाशके प्रदेश असंख्यात कहे गये हैं। ( एगमेगस्स णं भंते ! जीवस्स केवइया जीवपएसा पन्नत्ता ! ) हे भदन्त ! एक एक जीव के जीव प्रदेश कितने कहे गये हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (जावइया लोगागासपएमा-एगमेगस्त णं जीवस्स एवड्या जीवपएसा पण्णत्ता) जितने प्रदेश लोकाकाश के कहे गये हैं-इतने ही जीव प्रदेश एक एक जीव के कहे गये हैं।
લોકાકાશ પ્રદેશ વક્તવ્રતા– " केवइया णं भंते ! लोगागासपएसा पण्णता" त्या
सूत्राथ - ( केवइया णं भंते ! लोगागासपएसा पण्णत्ता १ ) महन्त ! सोना सा प्रदेश ४ा छ ? ( गोयमा !) हे गौतम ! ( असंखेज्जा लोयागासपएसा पण्णत्ता ) शन। प्रदेश मन्यात द्या छ. ( एगमेग. स्सण भंते ! जीवस्त्र केवइया जीवपएसा पण्णत्ता १) महन्त ! मे से
प्रदेश टस ॥ छ१ (गोयमा ! ) के गौतम! (जावइया लागागासपएसा-एगमेगस्स ण जीवरस एवइया जीवपएसा पण्णत्ता) सोना જેટલા પ્રદેશ કહ્યા છે, એટલા જ એક એક જીવન જીવપ્રદેશ કહેવામાં આવ્યા છે.
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭