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________________ प्रमेयद्रिका ठी० श० ८ उ० १० सू० ३ पुनलपरिणाम निरूपणम् ४९१ टीका -' इविहे णं भंते ! पोग्गल परिणामे पण्णत्ते' हे भदन्त ! कतिविधः खलु पुलपरिणामः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह - ' गोयमा ! पंचविहे पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते' हे गौतम! पञ्चविधः पुलपरिणामः प्रज्ञप्तः, ' तंजहा वनपरिणामे १, गंधपरिणामे 3, रसपरिणामे ३, फासपरिणामे ४, संठाणपरिणामे ५, ' तद्यथावर्णपरिणामः १, गन्धपरिणामः २, रसपरिणामः ३, स्पर्शपरिणामः ४, संस्थानपरिणामश्च ५, तत्र यत् पुद्गलो वर्णान्तरत्यागाद् वर्णान्तरं प्राप्नोति असौ वर्णपणामे, जाव आययसंठाणपरिणामे ) जो इस प्रकार से है- परिमण्डल संस्थान परिणाम, यावत् आयतसंस्थान परिणाम | टीकार्थ - इससे पहिले जीवपरिणाम कहा जा चुका है। परिनाम का अधिकार होने से सूत्रकार पुद्गलपरिणाम की वक्तव्यता कहते हैं - इसमें से गौतम ने प्रभु ऐसा पूछा है - ( कह विहे णं भंते! पोरगलपरिणा पण्णत्ते) हे भदन्त ! पुद्गलपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं (गोधमा ) हे गौतम! ( पंचविहे पोरगलपरिणामे पण्णत्ते) पुद्गलपरिणाम पाँच प्रकार का कहा गया है। ( तं जहा जो इस तरह से है- (वन्नपरिणामे, गंधपरिणामे, रसपरिणामे, संठाणपरिणामे ) वर्णपरिणाम, गंधपरिणाम, रसपरिणाम, स्पर्शपरिणाम और संस्थान परिणाम- जो पुद्गल एक वर्ण के परित्याग से अन्यवर्ण को प्राप्त करता है वह वर्णपरिणाम है - इसी तरह से गंध आदि परिणामों को भी जानना चाहिये । परिणामे) परिभउस सस्थान परिणामथी बहने आायत संस्थान परिणाम પન્તના પાંચ પરિણામ અહીં ગ્રહણ કરવા. टीडार्थ - —આ પહેલાં જીવપરિણામનું પ્રતિપાદન થઇ ગયું. હવે પરિણામના અધિકાર ચાલુ હાવાથી સૂત્રકાર પુદ્ગલપરિણામનું નિરૂપણુ કરે છે— ગૌતમ સ્વામી આ વિષયને અનુલક્ષીને મહાવીર પ્રભુને એવા પ્રશ્ન પૂછે छे – (कविणं भते ! पागलपरिणामे पण्णत्ते ? ) हे लहन्त ! युद्धस પરિણામના કેટલા પ્રકાર કહ્યા છે? મહાવીર પ્રભુ તેને જવાબ આપતા કહે छे है-( पचविहे पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते ) हे गौतम! युद्धस परिणामना यांच प्रहार उद्या हो. " तं जहा " ते अमरोनीयेप्रमाणे छे" वन्नपरिणामे " वर्षा परिणाम, “ रखररिणामे " रसपरिणाम, " गंधपरिणामे " अधपरिणाम, "फासपरिणामे " स्पर्श परिणाम भने “ संठाणपरिणामे " संस्थान परिणाम ने પુદ્ગલ એક વર્ણ ના પરિત્યાગ કરીને અન્ય વને પ્રાપ્ત કરે છે, તે પરિણામને વણુ પરિણામ કહે છે એજ પ્રમાણે ગંધ આદિ પરિણામે વિષે પણ સમજવું. श्री भगवती सूत्र : ৩
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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