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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ८ उ. १० सू. १ शोलश्रुतादिनिरूपणम् ४५९ वच्मि, यावत् भाषे, प्रज्ञापयामि, मरूपयामि, तचैव युक्तिमाह-' एवं खलु मए चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, ' हे गौतम ! एवं खलु वक्ष्यमाणरीत्या मया चत्वारः पुरुषजाताः-पुरुषप्रकाराः प्रज्ञप्ताः, तानेवाह-'तं जहा-सीलसंपन्ने णाम एगे, णो सुयसंपन्ने ?' तद्यथा-एकः खलु पुरुषः शीलसम्पन्नो नाम भवति नो श्रुतसम्पन्नो भवति १, 'सुयसंपन्ने णामं एगे, नो सीलसंपन्ने २' एकोऽपरः खलु पुरुषः श्रुतसम्पन्नो नाम भवति, नो शीलसम्पन्नो भवति २ 'एगे सीलसंपन्ने वि, मुयसंपन्ने वि ३' एकोऽन्यः पुनः पुरुषः शीलसम्पन्नोऽपि भवति, श्रुत. सम्पन्नोऽपि भवति ३, 'एगे णो सीलसंपन्ने, णो सुयसंपन्ने ४ ' एकः स्खल चतुर्थः पुरुषः नो शीलसम्पन्नो भवति, नो श्रुतसम्पनो वा भवति ४, 'तत्थ णं जे से पढमे पुरिसनाए, से णं पुरिसे सीलवं असुयवं, उवरए, अविन्नायधम्मे' है वह मिथ्या है-इस में युक्ति को प्रदर्शित करने के निमित्त प्रभु कहते हैं-(एवं खलु मए चत्तारि पुरिस जाया पण्णत्ता) हे गौतम ! मेरे द्वारा इस विषय में चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं (तं जहा) जो इस प्रकार से हैं-(सील संपन्ने णामं एगे णो सुय संपन्ने १,) उन पुरुषों में एक प्रकार ऐसा है जो शीलसंपन्न तो होता है पर श्रुत संपन्न नहीं होता है । (सुयसंपन्ने णामं एगे, नो मीलसंपन्ने २) दूसरा प्रकार ऐसा है जो श्रुतसंपन्न होता है, शीलसंपन्न नहीं होता है। (एगे सीलसंपन्ने वि, सुयसंपन्ने वि ) तीसरा प्रकार ऐसा है जो शीलसंपन्न भी होता है और श्रुतसंपन्न भी होता है । ( एगे णो सीलसंपन्ने, णो सुयः संपन्ने) तथा चौथा प्रकार ऐसा है जो न शीलसंपन्न होता है और न श्रुतसंपन्नहोता है। (तत्थ णं जे से पढमे पुरिसजाए से णं पुरिसे सीलवं પરસિદ્ધાન્તોનું ખંડન કરીને સ્વસિદ્ધાંતનું પ્રતિપાદન કરવા માટે નીચેનાં દૃષ્ટાન્ત मा छ-( एवं खलु मए चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता-तजहा) गौतम! આ વિષયનું પ્રતિપાદન કરવા માટે નીચેના ચાર પ્રકારના પુરુષોની મારા દ્વારા प्र३५॥ ४२मा माछ-" सीलसंपन्ने णामं एगे, णो सुयसंपन्ने१," ते ચાર પ્રકારના પુરુષોમાંથી એક પ્રકાર એવો હોય છે કે જે શીલસંપન્ન તે डाय छ ५४ श्रुतसपन्न हात नथी. “ सुय संपन्ने णामं एगे, नो सील संपन्ने" બીજો પ્રકાર એ હોય છે કે જે મૃતસંપન્ન હોય છે પણ શીલસંપન્ન હોતે नथी. ( एगे सीलसंपन्ने वि, सुयस पन्ने वि) श्री १२ सवा डाय छ है २ शससपन्न पाय छ भने श्रुतसपन्न ५५ डाय छे. (एगे णो सील. संपन्ने णो सुयस पन्ने) तथा योथे। ५४२ वा हाय छ २ शीस पन्न पण हात नथी म श्रुतपन्न ५ जात नथी. (तत्थणं जे से पढमे पुरिस
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭