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________________ ૨ भगवतीसूत्रे केभ्यश्च पूर्वपतिपन्नकानां बहुत्वात् वैक्रियसर्वबन्धकेभ्यो वैक्रियदेशबन्धका असंख्येयगुणा भवन्तीति भावः४, 'तेयकम्मगाणं अबंधगा अणंतगुणा, दुण्हवि तुल्ला५,' तैजसकार्मणयोः शरीरयोरबन्धका अनन्तगुणाः भवन्ति यस्मात्ते सिद्धा एव भवन्ति, ते च सिद्धाः वैक्रियदेशबन्धकेभ्योऽनन्तगुणा एव भवन्ति, वनस्पतिवर्जेभ्यः सर्वजीवेभ्यः सिद्धानामनन्तगुणत्वात् , द्वावपि तैजसकार्मणबन्धको परस्परं तुल्यौ भवतः५, 'ओरालियसरीररस्स सव्वबंधगा अणंतगुणा ६' औदारिकशरीरस्य सर्वबन्धका अनन्तगुणा भवन्ति, ते चौदारिकसर्वबन्धकाः वनस्पतिप्रभृतीन् आश्रित्य प्रत्येतव्याः६, 'तस्स चेव अबंधगा विसेसाहिया७' तस्यैव चौदारिकशरीरस्य अबन्धका विशेषाधिका भवन्ति, एते हि औदारिकाबन्धकाः सिद्धादयो नक जीवों की अपेक्षा पूर्वप्रतिपन्नक जीव बहुत है, इस कारण वैक्रिय शरीर के सर्वबंधकों की अपेक्षासे इसके देशबंधक जीव असंख्यात गुणे हैं ऐसा कहा गया है। (तेयकम्मगाणं अवंधगा अणंतगुणा दुण्ह वि तुल्ला) तैजस और कार्मण इन शरीरों के अबंधक जीव अनन्तगुणित हैं इन के अबंधक तो सिद्ध ही हैं। ये सिद्ध वैक्रिय देशबंधक जीवों से अनन्तगुणें हैं। क्यों कि वनस्पति जीवों से वर्जित समस्त जीवों से सिद्ध अनन्तगुणे कहे गये हैं। तैजस और कार्मण इन दोनों के बंधक जीव परस्पर में तुल्य हैं। (ओरालियसरीरस्स सव्वबंधगा अणंतगुणा) औदारिक शरीरके सर्वबंधक जीव अनन्तगुणें हैं, ऐसा जो कहा गया है -वह वनस्पति आदि जीवों की अपेक्षा से कहा गया है (तस्स चेव अबंधगा विसेसाहिया) तथा औदारिक शरीर के अबंधक जीव विशेરીતે પ્રતિપદ્યમાનક જ કરતાં પૂર્વ પ્રતિપન્નક જ વધારે છે, તેથી વૈકિય શરીરના સર્વબંધકે કરતાં તેના દેશબંધક જીવે અસંખ્યાતગણ છે, એવું કહેવામાં मायुं छे. (तेयकम्मगाणं अबंधगा अणतगुणा दुण्ह वितुल्ला ) वैठिय शरीरना દેશબંધકે કરતાં તજસ અને કામણ શરીરના અબંધક જી અનંતગણુ છે. તેમના અબંધક તે સિદ્ધ જ છે. તે સિદ્ધ છે વૈક્રિય દેશબંધક જી કરતાં અનંતગણુ છે. તેનું કારણ એ છે કે વનસ્પતિ છ સિવાયના સમસ્ત જી કરતાં સિદ્ધ છે અનંતગણ કહ્યાં છે. તજસ અને કામણ, આ બંનેના मधी समीकतनी २।४२ छ. “ ओरालियसरीरस्स सव्वबधगा अणतगुणा" દારિક શરીરના સર્વબંધક જીવો અનંતગણું છે, એવું જે કહેવામાં આવ્યું छत वनस्पति माद वानी अपेक्षा वामां माव्यु छ. ( तस्सव अवधगा विसेसाहिया ) मोहरि शरीरना समय। ४२i मध। विशे શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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