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________________ प्रमेयचद्रिका टी००८३०९०१० मौदारिकादिबन्धस्य परस्पर सम्बन्धनि०४३१ नो वा सर्वबन्धको भवतीति भावः । एवं रीत्या औदारिकवैक्रिय - आहारकशरीराणां सर्वबन्ध - देशबन्धान् अन्येषां बन्धैः सह प्ररूप्य अथ तैजसदेशबन्धं मरूपयितुमाह-' जस्स णं भंते ! तेयासरीरस्स देसवधे, सेणं भंते! ओरालियसरीरस्स किं बंधए, अबंधए ? ' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! यस्य खलु जीवस्य तैजसशरीरस्य देशबन्धो भवति, हे भदन्त । स खलु तैजसशरीरदेशबन्धको जीवः किम् औदारिकशरीरस्य बन्धको भवति अवन्धको वा भवति ? ' भगवानाह - ' गोयमा ! जीव तेजस और कार्मणशरीर का सर्वबंधक न होकर केवल देशबंधक ही होता है ! इस तरह वह उसका अबंधक नहीं होता । इसरीति से औदारिक, वैक्रिय, अहारकशरीरों के सर्वबंध और देशबंधों की अन्यशरीरों के बंधों के साथ प्ररूपणा करके अब सूत्रकार तैजसशरीर के देशबंध की प्ररूपणा करते हैं - इसमें प्रभु से गौतम ने ऐसा पूछा है( जस्स णं भंते ! तेयासरीरस्स देसबधे, से णं भंते ! ओरालियसरीरस किं बंध अबंध) हे भदन्त ! जो जीव तैजसशरीर का देशबंधक होता है, वह क्या ! औदारिकशरीर का बंधक होता है, या अबंधक होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - ( गोयमा ) हे गौतम! ( बंधए वा अबंध वा) तैजसशरीर का देशबंधक जीव औदारिकशरीर का बंधक भी होता है और अबंधक भी होता है। इसका तात्पर्य ऐसा है कि विग्रहगति में वर्तमान जीव तेजसशरीर से युक्त तो रहता है पर वह પશુ અષધક જ રહે છે. પરન્તુ આહારક શરીરના દેશબંધક જીવ વૈજસ અને કામ ણુશરીરને સ`ખધક હાતા નથી, પણ ફકત દેશખષક જ હાય છે. આ રીતે તે કામણુ અને તૈજસશરીરોના અષધક હાતા નથી. હવે સૂત્રકાર તેજસ શરીરના દેશખ ધની સાથે અન્ય શરીશની ખધકતા કે અબંધકતાનું નીચેના પ્રશ્નોત્તા દ્વારા પ્રતિપાદન કરે છે— गौतम स्वाभीना प्रश्न - ( जस्स णं भंते ! तेया सरीरस्त देसब घे, सेणं भंते! ओरालियस रीरस्स कि बंधए, अब धर ) हे लहन्त ! मे एव तेन्स શરીરના દેશખ ધક હાય છે, તે શુ` ઔદારિક શરીરના ખખક ડાય છે, કે અખધક હાય છે ? महावीर प्रभुना उत्तर- " गोयमा ! " हे गौतम! " बंधए वा, अबपरवा " तैक्स शरीरनो देशमध व मोहारिक शरीरनो मंध पहाय છે અને અષધક પણ હેય છે. આ કથનનું તાત્પય' એવું છે કે વિષ્રહગતિમાં રહેલા જીવ વૈજસ શરીરથી યુક્ત તા રહે છે, પણ તે જીવ તે સમયે ઔદ્યા श्री भगवती सूत्र : ৩
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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