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________________ - જ૨૮ भगवतीस्त्र रीत्या यथा वैक्रियशरीरस्य सर्वबन्धेन सर्वबन्धविषयकालापकेन सहान्येषां भणितम् , तथैव देशबन्धकेनापि सह भणितव्यम् , यावत् वैक्रियशरीरस्य देशबन्धको जीवः आहारकस्य नो बन्धकः अपितु अबन्धकः तैजसकार्मणशरीरयोर्देशबन्धको भवति, नो सर्वबन्धक इति भावः, अथ आहारकस्य सर्वबन्धेन सहान्येषां बन्धं मरूपयतिजस्स णं भंते ! आहारगसरीरस्स सम्बबंधे, से णं भंते ! ओरालियसरीरस्स कि बंधए, अबंधए ? ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! यस्य खलु जीवस्य आहारकशरीरस्य सर्ववन्धो भवति, हे भदन्त ! स खलु आहारकशरीरस्य सर्वबन्धको जीवः किम् औदारिकशरीरस्य बन्धको भवति ? अबन्धको वा भवति ? भगवानाह'गोयमा ! नो बंधए, अबंधए' हे गौतम ! आहारकसर्वबन्धकः औदारिकशरीरस्य कम्मगस्स) वैक्रियशरीर के सर्वबंध विषयक अभिलाप के साथ अन्य शरीरों की बंधकता और अबंधकता जिस प्रकार से प्रकट की गई है उसी प्रकार से वैक्रियदेशबंध के साथ भी अन्य शरीरों की बंधकता और अबंधकता जाननी चाहिये तथा च-वैक्रियशरीर का देशबंधक जीव आहारकशरीर का बंधक नहीं होता है अबंधक ही होता है। तेजस और कार्मण शरीर का वह देशबंधक होता है, सर्वबंधक नहीं होता है। (जस्स णं भंते! आहारगसरीरस्स सव्वबंधे से गं भंते ! ओरालिय सरीरस्स किं बंधए, अबंधए ) हे भदन्त ! जो जीव आहारक शरीर का सर्वबंधक होता है वह जीव क्या औदारिक शरीर का बंधक होता है ? या अबंधक होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम ! देसबघेण वि भाणियव्वं जाव कम्मगरस) यशशरना सम विषय અભિલાપમાં અન્ય શરીરની બંધતા અને અખંધતા જે રીતે પ્રકટ કરવામાં આવી છે, એ જ પ્રમાણે વૈક્રિય દેશબંધની સાથે પણ અન્ય શરીરની બંધકતા અને અખંધતા સમજવી. જેમકે વૈક્રિયશરીરને દેશબંધક જીવ આહાર શરીરને બંધક હોતું નથી–પણ અબંધકજ હોય છે. વૈક્રિયશરીરને દેશબંધક જીવ કામણ અને તૈજસશરીરને દેશબંધકજ હોય છે–સર્વબંધક હેતે નથી. હવે સૂત્રકાર આહારક શરીરબંધની સાથે અન્ય શરીરની અંધતા, અખંધતા પ્રકટ કરવા માટે નીચેના પ્રશ્નોત્તરો આપે છે– गौतमवाभाना प्रश्न-(जस्म णं भो! आहारगसरीरस्स सव्व से भो ! ओरालियसरीरस्स किंबधए, अबंधए १ ) 3 महन्त ! २ ०१ माडी. રકશરીરને સર્વબંધક હોય છે તે જીવ શું ઔદારિક શરીરને બંધક હોય છે, B 4 डाय छ तेना उत्तर मापता महावीर प्रभु -(गोयमा) શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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