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प्रमेयचन्द्रिका टी००८३०९०१० औदारिकादिबन्धस्य परस्पर सम्बन्धनि०४६५
बन्धको भवति, अपितु अबन्धको भवति, ' एवं जहेव सव्वबंधेणं भणियं, तहेव देसव घेणत्रि, भाणियन्त्र, जाव कम्मगस्स णं' एवम् उक्तरीत्या यथैव औदारिकस्य शरीरस्य सर्वबन्धेन सर्वबन्धविषयाभिलापेन भणितं वैक्रियादीनामबन्धकत्वं बन्धकरवं च यथायोगं प्रतिपादितं तथैव औदारिकस्य शरीरस्य देशबन्धेनापि वैक्रियादीनामवन्धकत्वं बन्धकत्वं च यथायोगं प्रतिपत्तव्यं यावत् - औदारिकशरीरस्य देशबन्धकः आहारकशरीरस्य नो बन्धकोऽपितु अबन्धकः, एवमौदादिकदेशबन्धकः तेजसस्य शरीरस्य तु देशचन्धको भवति नो अवधकः, एवं कार्मणशरीरस्यापि खलु देशबन्धको भवति, नो अबन्धक इति भावः, अथ वैक्रियस्य सर्वबन्धमाश्रित्य शेषाणां बन्धप्ररूपणार्थमाह-' जस्स णं भंते ! वेउच्चियसरीरस्स सव्वबंधए, सेणं भंते ! ओरालियस रस्स किं बंधए, अधए ? ' गौतमः पृच्छति हे भदन्त ! वैशरीर का बंधक नहीं होता है, अबंधक ही होता है - इसी बात को सूत्रकार ने (जहेव सव्वबंधेण भणियं तहेव देसबंधेण वि भाणिय
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यं जाव कम्मगस्स णं ) इस पाठ द्वारा समझाया है। इस में यह सम झाया गया है कि जिस प्रकार से औदारिक शरीर के सर्वबंधविषयक अभिलाप द्वारा वैक्रिय आदि की बंधकता और अबंधकता प्रकट की गई है, उसी प्रकार से औदारिकशरीर के देशबंध के साथ में भी वैक्रिय आदि शरीरों की बंधकता और अबंधकता जाननी चाहिये तथा चऔदारिक शरीर का देश बंधक जीव आहारकशरीर का बंधक नहीं होता है - किन्तु अबन्धक ही होता है। इसी तरह से वह तैजसशरीर का देशबंधक ही होता है सर्वबंधक नहीं होता । और न वह उसका अबंधक ही होता है। इसी तरह से कार्मणशरीर का भी देशबंधक ही होता है अबन्धक और सर्वबंधक नहीं होता है।
समंध होय छे. ( जहेव सव्त्रत्रघेण भणिय तद्देव देस घेण वि भाणिपव्वं जान कम्मस्वणं ) प्रेम मोहारिए शरीरना सर्वभधविषयक आसाय द्वारा વૈક્રિય આદિની બંધકતા અને અષધકતા પ્રકટ કરવામાં આવી છે, એજ પ્રમાણે ઔદારિકશરીરના દેશબંધની સાથે વૈક્રિય આદિ શરીરની બંધકતા અને અખધકતા સમજવી જેમ કે-ઔદારિકશરીરના દેશબંધક જીવ આહ્વા કશરીરના ખધક હાતા નથી પણ અમધક જ હાય છે. એજ પ્રમાણે એવા જીવ તેજસશરીરના દેશળ ધક જ હોય છે-અમ'ધક હાતા નથી. એજ પ્રમાણે ઔદ્વારિકશરીરના દેશબંધક જીવ કાજીશરીરના પણ દેશખંધક જ હાય છે— તે તેને અખધક અને સબધક હાતા નથી.
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श्री भगवती सूत्र : ৩