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________________ - - - - प्रमेयचन्द्रिका NOT०१०९सू०१० औदारिकाविबन्धस्य परस्परसम्बन्धनि०४२॥ भवति, सर्वबन्धस्तु तैजसस्य नास्त्येवेत्पमिप्रायेण प्रश्नोत्तरमाह-' तेयासरीरस्स किं बंधए, अबंधए ? ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! औदारिकशरीरस्य सर्वबन्धको जीवः किं तैजसशरीरस्य बन्धको भवति ? अबन्धको वा भवति ? भगवानाह'गोयमा ! बंधए, नो अबंधए ' हे गौतम ! औदारिकशरीरस्य सर्वबन्धको जीवः तैजसशरीरस्य देशवन्धको भवत्येव, नो अबन्धको भवति, सर्वबन्धकस्तु नो भवतीत्याशयेनाह-'जह बंधए कि देसबंधए. सव्वबंधए ? ' हे भदन्त ! यदि यत् खलु औदारिकशरीरसर्वबन्धकस्तैजसशरीरबन्धक उक्तः, स किं तैजसस्य देशबन्धकरूपः, सर्वबन्धकरूपो वा भवति ? इति प्रश्नः, भगवानाह-' गोयमा ! देसबंधए, नो सबबंधए ' हे गौतम ! स तैजसस्य देशबन्धको भवति, नो सर्वबन्धक इति भावः, उक्ततैनसशरीरवत् काम णशरीरम्यापि बन्धमतिदिशन्नाह--' कम्मासरीरस्स ही नहीं है-इसी बात को गौतम ने प्रश्न के रूप में प्रभु से (लेयामरीरस्स कि बंधए अबंधए ) ऐसा पूछा है-कि हे भदन्त ! जो जीव औदा रिक शरीर का सर्वयंधक है-वह क्या तैजसशरीर का बंधक होता है या अबंधक होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- (गोयमा! बंधए, नो अबंधए ) औदारिक शरीर का सर्वबंधक जीव तैजसशरीर का बंधक होता है अबंधक नहीं होता है। इस पर फिर गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा कि यदि वह जीव उसका बंधक होता है तो क्या वह (देमवंधए सव्वयंधए ) उसका देशबंधक होता है या सर्ववधक होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! ( देसबधए, नो सव्वयंधए ) वह उसका सर्वबंधक नहीं होता किन्तु देशबंधक ही होता है। इसी तरह से औदारिक शरीर का सर्वबंधक जीव कार्मणशरीर का भी देशबंधक ___गौतम स्वामीना प्रश्न-" तेयासरीररस कि बधए, अबधए !" है ભદન્ત ! જે જીવ દારિક શરીરનો સર્વબંધક છે, તે શું તેજસ શરીરને બંધક હોય છે, કે અબંધક હોય છે ? महावीर प्रभु तेना उत्तर मापता ४ छ- ' गोयमा ! बंधए, नो अवधए" है मौतम ! मोहार २ सय ७१ स शरीर બંધક હોય છે, આબંધક હેતું નથી. તે પ્રશ્નના અનુસંધાનમાં ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને એ પ્રશ્ન કરે છે કે જે તે જીવ તેને બંધક હોય છે, તે ततेन।" देसबंधए सव्वबंधए ?" शमधडाय छ, स हायछ ? महावीर प्रसुन उत्तर-गौतम! ( देसधए, नो सव्व बंधए ) ते तना સર્વબંધક હેતે નથી પણ દેશબંધક જ હેય છે. એ જ પ્રમાણે ઔદ્યારિક શરીરને સર્વબંધક છવ કામણ શરીરને પણ દેશબંધક જ હોય છે, સવ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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