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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीश(उ० सू०८ औदारिकाविबन्धस्य परस्परसम्बन्धनि० ४१५ कार्मणशरीरस्य किं बन्धकोऽबन्धकः ? यथैव तैजसस्य, यावत् देशबन्धकः, नो सर्वबन्धकः, यस्य खलु भदन्त ! औदारिकशरीरस्य देशबन्धः, स खलु भदन्त ! वैक्रियशरीरस्य किं बन्धकोऽबन्धकश्च ? गौतम ! नो बन्धकः अबन्धकः, एवं यथैव सर्वबन्धेन भणितं, तथैव देशबन्धेनापि भणितव्यम् , यावत्-कार्मणस्य खलु यस्य बंधक होता है। (कम्मासरीरस्स किं बंधए अबंधए) हे भदन्त ! औदारिक शरीर का सर्वबंधक जीव कार्मणशरीर का बंधक होता है या अबंधक होता है ? (जहेव तेयगस्स जाव देसबंधए नो सव्वबंधए) हे गौतम ! औदारिक शरीर का सर्वबंधक जीव कार्मणशरीर का तैजसशरीर की तरह देसबंधक होता है, सर्वबंधक नहीं होता है। (जस्स णं भंते ! ओरालियसरीरस्स देसबंधे से णं भंते ! वेउव्वियसरीरस्स कि बंधए, अबंधए) हेभदन्त ! जिस जीव से औदारिक शरीर का देशबंध होता है वह जीव क्या वैक्रियशरीर का बंधक होता है या अबन्धक होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (नो बंधए अबंधक) औदारिकशरीर का देशबंधक जीव वैक्रियशरीर का बंधक नहीं होता है किन्तु अबंधक होता है । ( एवं जहेव सव्वबंधेणं भणियं तहेव देसबंधेण वि भाणिय. व्वं ) जिस तरह से पहिले औदारिक शरीर के सर्वबंध के विषय में कहा जा चुका है उसी तरह से यहां पर औदारिक शरीर के देशबंध के विषय में भी कहना चाहिये-( जाव कम्मगस्स णं) यावत् नथी, ५ शिम ३४२४ सय छे. ( कामासरीरम्स किं बधए, अबघर !) હે ભદન્ત ! ઔદારિક શરીરને સર્વબંધક જીવ શું કામણ શરીરને બંધક हाय छ, } २ ४ २१य छ ? (जहेव तेयगस्स, जाब देसबधए नो सव्वावधए) હે ગૌતમ! દારિક શરીરને સર્વબંધક જીવ તેજસ શરીરના બંધક જીવ પ્રમાણે જ કાર્માણ શરીરને દેશ બંધક હોય છે, સર્વબંધક હોતું નથી. (जस्म णं भते! ओरालियसरीरस्स देसबधे से णं भते ! वेउब्वियसरीग्स्स किं बधए, अबधए ?) के महन्त ! मोह२ि४ शीरना श५५४ ७१ शुठिय शरिन डाय छ, , म य छ १ ( गोयभा !) गौतम ! (नो बंधए, अबधए) मोहरि शरीरने देश ७१ वैठिय ने 4 डात नथी पY AAJ ाय छे. ( एवं जहेव सव्वबंधे णं भणियं तहेव देसब घेण वि भाणियव्य) मा रीते मोहार शरीरना सपना विषयमा જે પ્રમાણે પ્રતિપાદન આગળ કરવામાં આવ્યું છે, એજ પ્રમાણે ઔદારિક २॥ देशमधना विषयमा पए प्रतिमा ४२ नये. (जाव कम्मगस्स ण) શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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