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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ८ उ. ९ सू० ९ कार्मणशरीरप्रयोगबन्धनिरूपणम् ४०९ स्वोकत्वमवन्धकानाम्, अनन्तगुणत्वं च देशवन्धकानां बोध्यम् । एवं रीत्या आयुष्कवर्जम् यावत्-दर्शनावरणीय - वेदनीय- मोहनीय- नाम - गोत्राऽऽन्तरायिककार्मणशरीर प्रयोगबन्धविषयेऽपि सर्वस्तोकत्वम् अवन्धकानाम्, अनन्तगुणत्वं देशबन्धकानामवसेयमिति भावः । अथ गौतमः आयुष्कविषये प्रश्नयति-' आउयस्त पुच्छा' हे भदन्त ! आयुष्कस्य पृच्छा, तथा च आयुष्ककार्मणशरीरप्रयोगस्य देशबन्धकानाम् अबन्धकानां च मध्ये कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा, बहुका वा, तुल्या वा, विशेषाधिका वा भवन्तीति प्रश्नः भगवानाह - ' गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा आउयस्स कम्मस्स देसबंधगा, अबंधगा संखेज्जगुणा ' हे गौतम! सर्वस्तोका जीवा आयुष्कस्य कार्मणस्य शरीरमयोगस्य देशवन्धका भवन्ति, अन्धका " इनसे अनन्तगुणा कहा गया है - ऐसा जानना चाहिये। इसी तरह से आयुष्क कार्मणशरीरप्रयोगबंध को छोड़कर शेष दर्शनावरणीय, वेदनीय मोहनीय, नाम, गोत्र और अन्तराय इन कार्मणशरीरप्रयोगबंधों के विषय में भी इनके अबन्धकों को सब से कम और देशबन्धकों को अनन्तगुणा जानना चाहिये । अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं ( आउयस्स पुच्छा ) हे भदन्त ! अयुष्क कार्मणशरीरप्रयोग के देशबंधकों एवं अबंधकों के बीच कौन जीव किनकी अपेक्षा अल्प हैं ? कौन जीव किनकी अपेक्षा बहुत हैं ? कौन जीव किनके बराबर हैं और कौन जीव किन की अपेक्षा विशेषाधिक हैं? इनके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ( गोयमा) हे गौतम! ( सव्वत्थोवा जीवा आउयस्स कम्मस्स देसबंधगा, अबंधगा संखेज्जगुणा ) अयुष्क कर्म के देशबंधक जीव सब से कम हैं और इनसे આછાં છે, અને દેશખ ધકે અખધકા કરતાં અન‘તગણુાં છે, એમ સમજવું. એજ પ્રમાણે આયુષ્ક કામણુ શરીર પ્રયાગખધ સિવાયના બાકીના દનાवरणीय, वेहनीय, भोडनीय, नाम, गोत्र भने अन्तराय अणु शरीर प्रयोગના અમ ધકે સૌથી એછાં છે અને દેશખ ધા અન’તગણુાં છે એમ સમજવું. गौतम स्वाभीनो प्रश्न - " आउयस्स पुच्छा " हे लहन्त ! आयुष्ड કામણુ શરીર પ્રયાગના દેશ ધકે અને અંધકેમાં કાણુ કાના કરતાં અલ્પ છે ? કાણુ કાના કરતાં અધિક છે ? કાણુ કાની ખરાખર છે? કાણુ કાનાં કરતાં વિશેષાધિક છે ? महावीर अलुनो उत्तर - " गोयमा " हे गौतम! " सव्वत्थोवा जीवा आउयरस कम्मरस देसब'धगा, अबधगा संखेज्जगुणा " आयुष्ड अभय प्रयोगना भ० ५२ श्री भगवती सूत्र : ৩
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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