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________________ ४०२ - - - भगवतीसरे राभावेन, रूपामदेन-सौन्दर्याहङ्काराभावेन, तपोऽमदेन-तपोऽहङ्काराभावेन, श्रुतामदेन-श्रुतज्ञानाहङ्काराभावेन, लाभामदेन, ऐश्वर्यामदेन-समृद्धयहङ्काराभावेन उच्चगोत्रकामणशरीर-यावत्-प्रयोगनामकर्मण उदयेन उच्चगोत्रकामणशरीरप्रयोगबन्धो भवति। गौतमः पृच्छति-नीयागोयकम्मासरीरपुच्छा ' हे भदन्त ! नीचगोत्रकाम णशरीरपृच्छा, तथा च नीचगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगबन्धः खलु कस्य कर्मण उदयेन भवति? भगवानाह-'गोयमा ! जाइमएणं, कुलमएणं, बलमएणं जाव इस्सरियमएणं णीयागोय कम्मासरीर-जाव-पओगबधे' हे गौतम ! जातिमदेन-अहं सर्वोत्तम जातीय इत्येवं जात्यहंकारेण,कुलमदेन-मम सर्वोत्तमं कुलमित्येवं कुलाभिमानेन, बलमदेन 'अहं सर्वापेक्षया विशिष्टशक्तिशाली ' इत्येवं शक्त्यहंकारेण यावत्मान नहीं कहने से, शक्तिका मद नहीं करने से, सौन्दर्य का अभिमान नहीं करने से, तपस्या का अभिमान नहीं करने से, श्रुतज्ञान का अहं. कार नहीं करने से ऐश्वर्य-समृद्धि का घमंड नहीं करने से, और उच्चगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगनामक कर्म के उदय से जीवको उच्चगोत्रकामणशरीरप्रयोग का बंध होता है। ____ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(नीयागोयकम्मासरीरपुच्छा) हे भदन्त ! नीचगोत्र कार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(जाइभएणं, कुलमएणं, बलमएणं जाव इस्सरियमएणं णीयागोयकम्मासरीरजावपओगबंधे) मैं मर्वोत्तम जाति का हूं, इस प्रकार के जाति के अहंकार से, मेरा सर्वोत्तम कुल है इस प्रकार के कुल के अभिमान से मैं सब से अधिक बलशाली हूं इस प्रकार के शक्ति के अहंकार से, मैं सघ से अधिक નહીં કરવાથી, સૌંદર્યનું અભિમાન નહીં કરવાથી, તપસ્યાને ગર્વ નહીં કરવાથી, શ્રુતજ્ઞાનને ગર્વ નહીં કરવાથી, ઐશ્વર્ય (સમૃદ્ધિ) ને ગર્વ નહીં કરવાથી અને ઉચ્ચગોત્ર કાર્માણ શરીર પ્રયોગ નામક કર્મના ઉદયથી જીવ ઉચ્ચત્ર કાર્મણ શરીર પ્રગબંધ કરે છે. गौतम स्वामीना प्रश्न-(नीयागोयकम्मासरीरपुच्छा ) के महन्त ! નીચગોત્ર કામણ શરીર પ્રગ બંધ કયા કર્મના ઉદયથી થાય છે? महावीर प्रसुने। उत्तर-( आतिमएण, कुलमएण, बलमएण जाव ईस्सि. रियमएण णीयागोय कम्मासरीर जाव प्पओगब'धे ) “ई सवात्तम जतिना छ." A सरे नतिर्नु मलिमान ४२वाथी, “माण स्वात्तम छ," मा प्रभारी गर्नु भनिभान ४२वायी, “ ई सौथी पधारे पान छ," આ પ્રમાણે શક્તિને અહંકાર કરવાથી, “સૌથી વધારે સુંદર છું,” આ श्री.भगवती सूत्र : ७
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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