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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०८ उ० ८ सू०२ व्यवहारस्वरूपनिरूपणम् २५ हार प्रायश्चित्तादिकं प्रस्थापयेत् , ' णो य से तत्थ धारणा सिया, जहा से तत्थ जीए सिया, जीएण ववहार पट्टवेज्जा' नो च नैव यदि तस्य व्यवहारकर्तुस्तत्र व्यवहर्तव्यादौ धारणा स्यात्तदा यथा यादृशं तस्य तत्र जीतं स्यात् तादृशेन जीते नैव व्यवहोरं प्रायश्चित्तादिकं प्रस्थापयेत् प्रवर्तयेत् , उपर्युक्तमुपसंहरन्नाह- इच्चेएहिं पंचहि ववहार पट्ठवेज्जा, तं जहा-आगमेणं, सुएणं, आगाए, धारणाए, जीएणं' इत्येतैः उपर्युक्तः पञ्चभिः आगम-श्रुता-ज्ञाधारणाजीतैः व्यवहार प्रायश्चित्तादिकं प्रस्थापयेत् प्रवर्तयेत् , तान्येवाह-तद्यथा आगमेन, श्रुतेन, आज्ञया, रूप व्यवहार नहीं है, तो जैसी उसके पास प्रायश्चित्त आदि व्यवहार चलाने के लायक धारणा हो-वह उससे उस प्रकार का प्रायश्चित्त आदि देवें ( णो य से तत्थ धारणा सिया, जहा से तत्थ जीए सिया, जीए ण ववहारं पट्टवेज्जा ) यदि व्यवहार कर्ता को व्यवहर्तव्य आदि में धारणा नहीं है तो जैसा उसके पास जीत व्यवहार हो, उससे ही वह उस प्रकार का प्रायश्चित्त आदि व्यवहार चलावें । अब सूत्रकार उस उपर्युक्त विषय का उपसंहार करते हुए कहते हैं कि 'इच्चेएहिं पंचहिं ववहारं पडवेज्जा' इस प्रकार से इन पांच व्यवहारों से-आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीत इनसे-व्यवहर्ता प्रायश्चित्त आदि को चलावें। इन्हीं व्यवहारों के नाम इस सूत्रद्वारा प्रकट किये गये हैं 'तं जहा'आगमेणं, सुएणं, आणाए, धारणाए, जीएणं'। इन आगम, श्रुत, आज्ञा धारणा और जीतरूप व्यवहारों में से किसी एक से जो जिसके पास વ્યવહાર ન હોય તે પ્રાયશ્ચિત આદિ દેવાને માટે તેની પાસે જેવી ધારણા हाय, ते पा२।। ६२॥ तरी ते ४२नु प्रायश्चित्त माह हेवु नये. (णो य से तत्थ धारणा खिया, जहा से तत्थ जीए सिया, जीए णं ववहार पठुवेज्जा) જે વ્યવહાર કર્તાની પાસે પ્રાયશ્ચિત્ત આદિ દેવાને માટે ધારણું ન હોય, તે તેની પાસે જે છતવ્યવહાર હોય એવા જીતવ્યવહાર દ્વારા જ તેણે પ્રાયશ્ચિત્ત આદિ વ્યવહાર ચલાવવો જોઈએ. वे सूत्रा२ ५युत विषयी ५ २ ४२ता ४ छ8-( इच्चेएहिं पंचहिं ववहार पट्टवेज्जा ) 24प्रा२ना 24. पाय व्यवहारथी ( मागम, श्रुत, આજ્ઞા, ધારણ અને જીત) વ્યવહર્તાએ પ્રાયશ્ચિત આદિ વ્યવહાર ચલાવ તે વ્યવહારોનાં નામ આ સૂત્ર દ્વારા સૂત્રકારે પ્રકટ કર્યા છે— (तजहा-आगमेणं, सुएणं, आणाए, धारणाए, जीएणं ) 21 मागम, श्रुत, આજ્ઞા, ધારણ અને છતરૂપ વ્યવહાર માને છે કેઈ એક વ્યવહાર જેની શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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