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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० २०८ ३० ९ सू० ६ वैक्रविशरीरप्रयोग बन्धवर्णनम् ३२७ बन्धान्तर जघन्येन वर्ष पृथक्त्वम् उत्कर्षेण वनस्पतिकालः जीवस्य खलु भदन्त ! अनुत्तरोपपातिक पृच्छा, गौतम ! सर्वबन्धान्तरं जघन्येन एकत्रिंशत् सागरोपमानि वर्ष पृथक्त्वाभ्यधिकानि उत्कर्षेण संख्येयानि सागरोपमानि, देश बन्धान्तरं जघयेन वर्षपृथक्त्वम् उत्कर्षेण संख्येयानि सागरोपमानि एतेषां खलु भदन्त ! जीवानां वैक्रियशरीरस्य देशवन्धकानाम् सर्ववन्धकानाम्, अवन्धकानां च कतरे , " उक्कोसेणं अनंतकालं वणस्हकालो, देसबंधंतरं जहणेणं वासपुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो ) यहां सर्वबन्ध का अन्तर जघन्य से वर्षपृथक्त्व अधिक २२ सागरोपम का है और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल जितना है । तथा देशबंध का अन्तर जघन्य से वर्षपृथक्त्व है और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल जितना है । ( जीवस्स णं भंते ! अणुत्तरोववाइयपुच्छा ) हे भदन्त ! अनुत्तरोपपातिक देव का वैक्रिय शरीरप्रयोगबंध काल की अपेक्षा कितना है ? ( गोयमा ) हे गौतम! ( सव्वब धंतरं जह odi एकतीसं सागरोवमाई वासपुत्तमम्भहियाई, उक्कोसेणं संखेज्जाई सागरोवमाई) यहां सर्वबंधका अन्तर जघन्यसे वर्षपृथक्त्व अधिक ३१ सागरोपमका है, और उत्कृष्टसे संख्यातसागरोपमका है। (देसबंधंतरं जहणेणं वासन्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई सागरोवमाई ) देशबंध का अंतर जघन्य से वर्ष पृथक्त्व और उत्कृष्टसे संख्यात सागरोपमका है। (एएसि णं भंते! जीवाणं वेउव्वियसरीरस्स देसबंधगाणं, सव्वबंध सागरोवमाई वासपुहत्तमन्महियाई कार्यव्वा, उक्कोसेणं अणतं कालं वणरसइकालो, देसबंधंतर जहण्णेण वासपुहुत, उक्कोसेण वणरसइकालो ) अही सर्वधनुं धन्य અંતર ૨૨ ખાવીસ સાગરોપમ કરતાં વપૃથકત્વ અધિક છે, અને ઉત્કૃષ્ટ અંતર અનંતકાળનું–વનસ્પતિકાળ જેટલું છે. તથા દેશખ ધનું જઘન્ય અંતર वर्ष पृथत्वनुं छे भने उत्कृष्ट अ ंतर वनस्पतिज भेटतुं छे. ( जीवस्स ण भंते! अणुत्तरोववाइय पुच्छा) डे लन्त ! अनुत्तरौपयाति देवना वैडियशरीरप्रयोग अधनुं अ ंतर अजनी अपेक्षाओ ईटसु छे ? ( गोयमा ! ) डे गौतम ! ( सव्वबध'तर' जहण्णेण' एकतीसं सागरोवमाई वासपुहुत्तमन्महियाई, उक्कोसेण संखेज्जाई सागरोवमाई ) अडीं सर्वधनुं धन्य अंतर ३१ सागरोपम प्रभा કાળ કરતાં વર્ષ પૃથકત્વ અધિક છે અને ઉત્કૃષ્ટ અંતર સંખ્યાત સાગરોપમનું છે. (देससब'ध'तर' जहण्णेण ं वासपुहुत्त, उक्तोसेण' सौंखेज्जाई सागरोवमाई) हेशम धनुं જઘન્ય અંતર વર્ષે પૃથકત્વનું અને ઉત્કૃષ્ટ અંતર સંખ્યાત સાગરોપમનું છે. श्री भगवती सूत्र : ৩
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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