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________________ ३१२ भगवतीसूत्रे अन्तर्मुहूर्तमित्य तिदेशेनाह - 'पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं, मणुस्साणं य, जहा वाउFarsari पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानाम्, मनुष्याणां च यथा वायुकायिकानां वैक्रियशरीरप्रयोगस्य सर्वबन्धः एकं समयं देशबन्धस्तु जघन्येन एकं समयम् उत्कर्षेण च अन्तर्मुह भवति तथैव विज्ञेय इतिभावः, ' असुरकुमार नागकुमारजा अणुत्तरोववाइयाणं जहा नेरइयाणं' असुरकुमार - नागकुमार - यावत् - सुवर्णकुमारादिभवनपति - मानव्यन्तर- ज्योतिषिक - वैमानिक नवग्रैवेयक देवान तरौपपातिकदेवपञ्चेन्द्रियवैकियशरीरप्रयोगस्य सर्वबन्धः देशबन्धश्व यथा नैरयिकाणां वैक्रियशरीरमयोगस्य सर्वबन्धः एकं समयं देशबन्धथ जघन्येन दशवर्षसहस्राणि त्रिसमशरीर के सर्वबंध देशबंध के काल को लेकर इस (पंचिदिय तिरिक्ख जोणियाणं मणुस्साण य जहा वाउक्काइयाणं ) सूत्र द्वारा प्रकट की है । जिस प्रकार से वायुकायिक जीवों के वैक्रिय शरीर का सर्वबंध काल एक समय का है और देशबंध का काल जघन्य से एक समय का और उत्कृष्टसे अंतर्मुहूर्तका है-उसी प्रकार से पंचेन्द्रिय तिर्यंचों और मनुष्यों के वैक्रिय शरीर का सर्वबंध काल और देशबंध काल जानना चाहिये । ( असुरकुमारनागकुमार जाव अणुत्तरोववाइयाणं जहा नेरइयाणं ) असुरकुमार, नागकुमार, यावत् - सुवर्णकुमार आदि भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिषिक, वैमानिक नवग्रैवेयक देव, अनुत्तरोपपातिक देव, इन सब देवों का वैक्रिय शरीर का सर्वबंधकाल तथा देशबंधकाल जैसा नैरयिकों का कहा है वैसा ही यहां समझना चाहिये, उनमें उनका सर्वकाल एक समय का, और देशबन्धकाल जघन्य से अपनी अपनी वृधार अन्तर्मुहूर्त ना होय छे, सेन वात सूत्र ( प 'चिदियतिरिक्खजोणिया र्ण मणुस्माण य जहा बाउक्काइयाण ) या सूत्र द्वारा प्रभु पुरी छे भेटते है પાંચેન્દ્રિય તિય ચયેાનિક અને મનુષ્યના વૈક્રિયશરીરના સમધ અને દેશ અધનાકાળ વાયુકાયિકાના સબંધ અને દેશબંધ પ્રમાણે સમજવા, એટલેકે તેમના વૈક્રિયશરીરના સમધકાળ એક સમયના અને દેશખ ધકાળ જધન્યની અપેક્ષાએ એક સમયના અને ઉત્કૃષ્ટની અપેક્ષાએ અંતર્મુહૂતના હાય છે, श्शेभ समन्वु. (असुरकुमार नागकुमार जाब अणुत्तरोववाइयाणं जहा नेरइयाणं) અસુરકુમાર, નાગકુમાર, સુવર્ણ કુમાર આદિ ભવનપતિ, તથા વાનવ્યન્તર, તથા ચેતિષિકા, વૈમાનિક દેવા, નવચૈવેયકના દેવા અને અનુત્તરૌપપાતિક દેવાના વૈક્રિયશરીરના સ ખ ધકાળ તથા દેશખ ધકાળ નારકાના વિક્રયશરીરના સ અધકાળ અને દેશખ ધકાળ પ્રમાણે જ સમજવા-આગળ તેમના (નારકાના ) સર્વ બધકાળ એક સમયના અને દેશબંધકાળ જધન્યની અપેક્ષાએ જેમનું જેટલું श्री भगवती सूत्र : ৩
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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