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________________ ૨૮૮ भगवतीसरे चप्रतीत्य यथा वायुकायिकानाम् , मनुष्यपश्चेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबन्धः एवञ्चैव । असुरकुमारभवनवासिदेवपश्चन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबन्धो यथा रत्नप्रभापृथिवीनैरयिकाः, एवं यावत् स्तनितकुमाराः, एवं वानव्यन्तराः, एवं ज्योतिषिकार, एवं सौधर्मकल्पोपपन्नका वैमानिकाः, एवं यावत् अच्युत-ग्रैवेयक-कल्पातीता वैमानिकाः एवं चैव । अनुत्तरौपपातिककल्पातीताः वैमानिकाः, एवं चैव । वैक्रियशरीरयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (वीरियसजोगसहव्वयाए जाव आउयं वा पडुच्च रयणप्पभापुढवि नेरइय पंचिंदिय जाव बंधे) सवीर्यता, सयोगता और सद्रव्यता से यावत् आयुष्क को आश्रय करके रत्नप्रभापृथिवी नैरयिक पंचेन्द्रिय शरीरप्रयोग नामकर्मके उदयसे यावत् वैक्रिय शरीरप्रयोगका बंध होता है । (एवं जाव अहे सत्तमाए ) इसी तरह से नीचे सातवों पृथिवीतक जानना चाहिये। (तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय वेउब्वियसरीरपुच्छा) हे भदन्त ! तिर्यश्चयोनिकपंचेन्द्रियशरीरप्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? ( गोयमा) हे गौतम! (वीरियसजोगस हव्वयाए चेव लद्धिं च पडुच्च जहा वाउक्काइयाणं मणुस्सपंचिंदिय वेउब्वियसरीरप्पओगबंधे एवं चेव, असुरकुमार भवणवासिदेवपंचिंदिय वेउब्वियसरीरप्पओगधे, जहा रयणप्पभापुढवीनेरइया, जाव थणियकुमारा एवं षाणमंतरा, एवं जोइसिया, एवं सोहम्मकप्पोवगया वेमाणिया, एवं जाव अच्चुय गेवेज्ज कप्पाईया वेमाणिया, एवं चेव, अणुत्तरोक्वाइयकप्पाईया वेमाणिया (गोयमा) गीतम! (वीरिय, सजोग, सहव्ययाए जाव आउय वा पडुच्च रयणपभापुढषि नेरइय पंचिदिय जाव बधे.) सवीयता, संयोग। मन સદ્રવ્યતાથી યાવત્ આયુષ્યને આશ્રિત કરીને રતનપ્રભા પૃથ્વી નૈરયિક પંચેન્દ્રિય વૈદિયશરીર પ્રયોગ બંધ થાય છે. ( एवं जाव अहे सत्तमाए) मे प्रमाणे नाये सातमी पृथ्वी पय-तना વિષયમાં સમજવું. (तिरिक्खजोणियपचि दिय वेउव्वियसरीरपुच्छा ) 3 महन्त ! तिय"ययोनि येन्द्रिय वैठियशरी२प्रयोगम' या ना यथी थाय छ ? (गोयमा) उ गौतम ! ( वीरिय, सजोग सहव्वयाए चेव लद्धि च पडुच्च वाउक्काइयाण मणुम्सपंचिंदिय वेउबियसरीरप्पओगधे, एवं चेव, असुरकुमारभवणवासि देव पंचि दिय वेउव्विय सरीरपओगबधे जहा रयणापमापुढवि नेरइया, एवं जाव थाणयकुमारा, एवं वाणमंतरा, एवं जोइसिया, एवं सोहम्मकमोवगया वेमाणिया, एवं जाव अच्चुयगेवेज्जवाइया वेमाणिया, एवं चेव, अणुत्तरोषवाइयकप्पाईया वेमाणिया एवं चेव ) सवीता, सयोगता भने सद्रव्यता त्याहि वायुयि श्री.भगवती सूत्र : ७
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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