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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०८ उ०१९०४ मोदारिकशरीरप्रयोगबन्धवर्णनम् २३७ न्द्रियस्य तथैव भणितव्यम् , देशबन्धान्तरम् जघन्येन एकं समयम् , उत्कर्षेण त्रयः समयाः यथा पृथिवीकायिकानाम् , एवं यावत्-चतुरिन्द्रियाणाम् , वायुकायवर्जितानाम् , नवरं सर्वबन्धान्तरम् उत्कर्षेण या यस्य स्थितिः सा समयाधिका बन्धका अन्तर काल की अपेक्षा कितना है ? (गोयमा) है गौतम ! पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय के औदारिक शरीर के बंध का अंतर (सव्वबंधंतरं जहेव एगिदियस्स तहेव भाणियन्वं, देसबंधंतरं जहणणं एक्कं समयं उक्कोसेणं तिनि समया जहा पुढविक्काइयाणं) सर्वबंध की अपेक्षा से जैसा एकेन्द्रिय का सर्वबंध का अंतर कहा गया है वैसा है और देशबंध का अंतर जघन्य से एक समय का और उत्कृष्ट से तीन समय का है। जैसा पृथिवीकायिक जीव के औदारिक शरीर बंध का अंतर कहा गया है उसी तरह से ( एवं जाव चउरिदियाणं वाउकाइय. वजाणं) यावत् चौइन्द्रिय जीवों तक के औदारिक शरीर बंध का अन्तर वायुकायिक जीवों के औदारिक शरीर बंध के अन्तर को छोड़कर जानना चाहिये (नवरं सव्वधंतरं उक्कोसेणं जा जस्सठिई सा समयाहिया कायव्वा ) पर यहां जो विशेषता है वह ऐसी है कि यहां सर्वबन्ध का उत्कृष्ट अन्तर जिसकी जितनी आयुष्य स्थिति है उसे एक समय अधिक करके कहना चाहिये । अर्थात् सर्वबंध का अन्तर પૃથ્વીકાયિક એકેન્દ્રિયના ઔદારિક શરીરના બંધનું અંતરકાળની અપેક્ષાએ तुं छे ? (गोयमा ! ) 3 गौतम ! पृथ्वीयिर मेन्द्रियना मोहा२ि४ शरीरना धनुं मत२ (सध्धबध तर जहेव एगिदियस्स तहेव भाणियव्वं, देसबध तर जहण्णेण एकक समयं उक्कोसेण तिन्नि समया जहा पुढविक्काइयाण) સર્વબંધની અપેક્ષાએ એકેન્દ્રિયના સર્વબંધના અંતર જેટલું જ છે અને દેશબંધની અપેક્ષાએ તે અંતર ઓછામાં ઓછું એક સમયનું અને વધારેમાં વધારે ત્રણ સમયનું છે. જેવી રીતે પૃથ્વીકાયિક જીના દારિક શરીર मधनु मत२ ४ामा माव्यु छ, ( एवं चेव जाव चउरि दियाण वाक्काइय वज्जाण) मेरी प्रमाणे यतुरिन्द्रिय पर्यन्तनवाना सौहार: शरीरमधन અંતર પણ સમજવું. પણ વાયુકાયિક જીના ઔદારિક શરીર બંધના અંતરને તે પ્રમાણે સમજવું જોઈએ નહીં. એટલે કે વાયુકાય સિવાયના જીના शरीर सपना सतरने मा ४थन सा ५ छ. (नवर' सव्वबंध'तर' उकोसेण जा जस्स ठिई सा समयाहिया कायवा) ५ मडी मेl an શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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