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________________ प्रमेयचन्द्रिका 30 श० ८ उ०९ सु० ५ औदारिकशरीरप्रयोगबन्धवर्णनम् २३५ समयोनानि । औरालिकशरीरवन्धान्तरं खलु भदन्त ! कालतः कियच्चिरं भवति ? गौतम ! सर्वबन्धान्तरं जघन्येन क्षुल्लकभवग्रहणं त्रिसमयोनम् , उत्कर्षेण त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमानि पूर्वकोटिसमयाधिकानि, देशबन्धान्तरं जघन्येन एकं समयम् , सरीरं तेसिं देसबंधो जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं जा जस्स ठिई सा समयऊणा कायव्वा) इसी तरह सर्वजीवोंका सर्वबंध काल एक समयका है और देशबंधकाल जिनको वैक्रियशरीर नहीं है इनका जघन्य से तीन समय कम क्षुल्लक भव ग्रहण पर्यन्त है और उत्कृष्ट से जिसकी जितनी आयुष्य स्थिति है उसमें से एक समय कमका है तथा जिनको वैक्रिय शरीर है उनके देशबंध का काल जघन्य से एक समय का है उत्कृष्ट से जिसकी जितनी आयुष्यस्थिति है उसमें से एक समय कम का है। (जाव मणु. स्साणं देसबंधे जहण्णेणं एकं समयं, उक्कोसेणं तिन्निपलिओवमाइं समयऊणाई ) यावत् मनुष्यों का देशबंध काल जघन्य से एक समयतक का और उत्कृष्ट से एक समय कम तीन पल्योपम तक का है। (ओरा. लियसरीरबंधंतरेणं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ) हे भदन्त ! औदारिक शरीर के बंध का अन्तराकाल की अपेक्षा कितना होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (सव्वबंधंतरं जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं तिसमयऊणं, उक्कोसेणं तेत्तीसं मागरोवमाइं पुव्वकोडिसमयाहियाई, देसबधंतरं जह भवगहण तिसमयऊणं) प्रभारी स वान। माछामा माछ। देश क्षुस मा ४२तात्रय न्यून सभयना छ (कोसेणौंजा जस्स ठिई सा समयऊणा कायव्वा, जेसि पुण अस्थिवेउव्वियसरीर तेसि देसबंधो जहण्णेणं एक समय उक्कोसेण' जा जस्स ठिई सा समयऊणा कायव्वा) भने उत्कृष्ट (पधारेमा धारे) કાળ જેમની જેટલી આયુષ્ય સ્થિતિ છે તેના કરતાં એક ઓછા સમયને છે. અને જેમને વૈકિય શરીર હોય છે તે જીના દેશબંધને કાળ ઓછામાં એ છે એક સમયને છે, અને જેમની જેટલી આયુષ્યસ્થિતિ છે, તેના કરતાં એક ઓછા સમયને ઉત્કૃષ્ટ દેશબંધ કાળ હોય છે. (जाव मणुरताण देसव'धे जहण्णे ण एक सभयं, उस्कोसेण तिन्निपलि ओवमाइ समयऊणाई) यावत् मनुष्याना शम माछामा माछ। ४ સમય સુધીને અને વધારેમાં વધારે ત્રણ પપમ પ્રમાણ કરતાં એક ન્યૂન सभय ५-तने छे. ( आरालियसरीरबंधतरेण भंते ! कालओ केवच्चिर' होइ ? ) 0 Rid ! मौरि शरीर धतुं मत२ जनी अपेक्षा हेतुं डाय छ १ (गोयमा ! ) 3 गौतम ! (सबबधतर जहण्णेण खुड्डागं भवगण, ति समयऊण, उक्कोसेण तेत्तीस सागरोवमाइ पुयकोडिसमयहियाइ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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