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________________ - प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ८ ७० ९ स० ३ प्रयोगबन्धनिरूपणम् १९३ केचलिसमुद्घातेन समवहतस्य तस्मात् समुद्घातात् मतिनिवर्तमानस्य अन्तरा मन्याने वर्तमानस्य तैजसकार्मणयोः बन्धः समुत्पद्यते, किं कारणम् ? तदा तस्य प्रदेशा एकत्वीकृता भवन्ति इति, स एष प्रत्युत्पन्नपयोगप्रत्ययिकः, स एष शरीरबन्धः, अथ कः स शरीरप्रयोगबन्धः ? शरीरमयोगबन्धः पञ्चविधः प्रज्ञप्तः १ तघथाताओ समुग्घायाओ पडियित्तेमाणस्स अंतरामंथे वट्टमाणस्स तेयाकम्माण बघे समुप्पज्जइ ) हे गौतम ! केवलिसमुद्घात से समुद्घात करते हुए और फिर पीछे उससे फिरते हुए केवली के मंथान अवस्था में रहते समय तैजस और कार्मण शरीर का जो बंध होता है वह प्रत्युत्पन्नप्रयो गमत्ययिक बंध है। (किं कारणं) हे भदन्त ! तैजस और कार्मणशरीर के बंध होने में वहां क्या कारण है ? (ताहे से पएसा एगत्तीया भवंति, सि) हे गौतम! उस समय केवली के आत्मप्रदेश संघात को प्राप्त होते हैं। इस कारण से उस केवली के तैजस और कार्मण शरीर प्रदेशों का बंध होता है । ( से संपडप्पन्नप्पोगपच्चइए) यही प्रत्युपत्रप्रयोगप्रत्ययिक बंध का स्वरूप है (से त्त सरीरबंधे ) इस तरह से शरीरबंध का स्वरूप कहा। (से किं तं सरीरप्पओगबंधे) हे गौतम! शरीरप्रयोगबंध का क्या स्वरूप है (सरीरप्पओगबंधे पंचविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! शरीरप्रयोगबंध पांच प्रकार का कहा गया है। (तं जहा) जो इस प्रकार से है-(ओरालियसरीरप्पओगषधे)१ औदारिक शरीर (पडुप्पन्नप्पआग पच्चइए जणं केवलनाणिस्स अणगारस केवलिसमुग्धारण समोहयस्स ताओ समुग्घायाओ पडिनियत्तेमाणस्स अंतरामथे वट्टमाणस्स तेयाकम्माणं बधे समुप्पज्जइ) 8 गौतम ! पति समुद्धात वा समुदधात २ता અને ત્યારબાદ તે સમુદ્દઘાતમાંથી પાછા ફરતી વખતે મંથાન અવસ્થામાં રહેતી વખતે કેવલીને જે તેજસ અને કામણ શરીરને બંધ થાય છે, તે બંધને प्रत्युत्पन्न प्रयोगप्रत्ययि५५ छे. (किं कारणं १) महन्त! तेस भने आम शरीरन। म वाम त्यां शु १२६ डाय छ १ ( ताहे से पएसा एगतीगया भवति, ति) 3 गौतम! ते समये वीना भात्म यात પામે છે. તે કારણે તે કેવલી તૈજસ અને કામણ શરીરને બંધ કરે છે. (से तं पडुप्पन्नओगपच्चइए) से प्रत्युत्पन्न प्रयास प्रत्यय: मनु १३५ छे. ( से त सरीरबधे) मा प्रकारे मा शरीरमधना ५१३५नु. પ્રતિપાદન પૂરું થાય છે. (से कि त सरीरप्पओगबंधे ?) 8 महन्त ! AN२ प्रयो। मधन स्व३५ छ ? (सरीरप्पओगधे पंचविहे पण्णत्ते-तजहा) गीतमा शरीर प्रयोग भवनानी प्रमाणे पाय 30-(ओरालियसरीरप्पभोग म २५ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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