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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ८ उ० ९ सू० ३ प्रयोगनन्धनिरूपणम् १९१ स्पद्यते, जघन्येन अत्तर्मुहूर्तम् , उत्कर्षेण संख्येयं कालम् , स एष देशसंहननबन्धः, अथ कः स सर्वसंहननबन्धः ? सर्वसंहननबन्धः स खलु क्षीरोदकादीनाम् , स एष सर्वसंहननबन्धः, स एष संहननबन्धः, स एष आलीनबन्धः । अथ कः स शरीरएवं स्यन्दमानी-पुरुष प्रमाणवाहनविशेष, तवा कडाही, करछी, आसन, शयन, स्तंभ, भाण्ड, पात्र, तथा और भी नानाप्रकार के उपकरणादि पदार्थों का जो संबंध होता है वह देशसंहननबंध है। (जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं संखेज्ज कालं) यह बंध जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त तक रहता है और उत्कृष्ट से संख्यातकालतक रहता है । ( से तं देससाहणणाधंधे) इस प्रकार से यह देशसंहननबंध का स्वरूप है। (से कि तं सव्वसाहणाबंधे) हे भदन्त ! सर्वसंहननबंध का क्या स्वरूप है ? (सव्वसाहणणाबंधे-से णं खीरोदगमाइणं से तं सन्वसाहणणाबंधे) हे गौतम ! दूध और पानी आदि पदार्थों का जो बंध है वह सर्वसंहनन बंध है। यही सर्वसंहननबंध का स्वरूप है। इस प्रकार से यहां तक (से तं साहणणाबंधे, से तं अल्लियावणबंधे) सादि सपर्यवसित बंधके चार प्रकारों में से द्वितीय प्रकाररूप आलीनबंध का कथन संहननबंध का कथन करने पर हो जाता है। (से किं तं सरीरबंधे) हे भदन्त । सादि सपर्यवसितबंध का जो तृतीय भेद शरीरथंध है उसका क्या (२७), शिम ( पासमी ), श्यन्हमादि। (५२५ प्रभार वाहन विशेष), तावडी, ४ाही, ४७छी, मासन, शयन, स्तन, His, पात्र, तथा भात विविध પ્રકારના ઉપકરણાદિ પદાર્થોને જે બંધ થાય છે, તે બંધને દેશ સંહનન બંધ छ. (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं संखेज्जं कालं ) म सहनन अध ઓછામાં ઓછા એક અંતમુહૂર્ત સુધી અને વધારેમાં વધારે સંખ્યાતકાળ सुधी २९ छे. ( से त देससाहणणाब'धे ) ॥ ५२नु देश सनन धनु ११३५ छ. (से किं तं सव्वसाहणणाबधे ?) महन्त ! सब सडनन धनु स्१३५ छ १ (सव्वसाहणणा बघे-से णं खीरोदगमाईणं से त्त सव्वसाहणणा बंधे) 3 गौतम ! इध अने ! माहि हाथीन। २ ५ थाय छ त બધનું નામ સર્વસંહનન બંધ છે. આ પ્રકારનું સંહનન બંધનું સ્વરૂપ છે. मा मही सुधीमा (से त्त साहणणा बंधे, से तं अल्लियावणबंधे) साहि સપર્યવસિત બંધના ચાર પ્રકારોમાંથી બીજા પ્રકાર રૂપ આલીન બંધનું કથન– હનન બંધનું નિરૂપણ થઈ જવાથી પૂરું થાય છે. (से कि त सरीरबधे) 3 महन्त ! साह स५५सित धनी २ ત્રિીને શરીરબંધ નામને ભેદ છે, તેનું કેવું સ્વરૂપ છે? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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