SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीसो स सादिकः अपर्यवसितः स खलु सिद्धानाम् , तत्र खलु यः स सादिकः सपर्यवसितः, स खलु चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-आलापनबन्धः, आलीनबन्धः, शरीरबन्धः, शरीरप्रयोगबन्धः, अथ का सआलापनबन्धः? आलापनबन्धो यः खलु तृणभाराणां वा, काष्ठभाराणां वा, पत्रभाराणां वा, पलालभाराणांवा, वेल्ल (पल्लव ) भाराणां वा, वेत्रलता-वल्क-वरत्रा रज्जु-वल्ली-कुश-दर्भादिभिः आलापनबन्धः समुत्पद्यते बंध है । (तत्थ गंजे से साइए अपज्जवसिए से णं सिद्धाणं) सादि अपयवसित बंध सिद्ध जीव के प्रदेशों का है । (तस्थ णं जे से साइए सपः ज्जवसिए से णं चउन्विहे पण्णत्ते ) इनमें जो सादि सपर्यवसित बंध है वह चार प्रकार का कहा गया है । (तं जहा ) जो इस प्रकार से है -(आलावणबंधे, अल्लियावणबंधे, सरीरबंधे, सरीरप्पओगबंधे ) १ आलापनबंध, २ आलीनबंध, ३ शरीरबंध, ४ शरीरप्रयोगबंध । ( से कि तं आलावणबंधे ) हे भदन्त ! आलापनबंधका क्या स्वरूप है ? (आला. वणबंधे ज णं तणभाराण वा, कट्ठभाराण वा, पत्तभाराण वा,पलालभाराण वा, वेल्लभाराण वा, वेत्तलया-वाग-वरत्त-रज्जु-वल्लि-कुस-दभमाइएहिं आलावणबंधे समुप्पज्जइ) हे गौतम ! आलापनबंध वह है-जो तृण के गट्ठों को, काष्ट के गट्टों को, पत्र के गट्ठों को पलालके बोझों को, बेलोंके बोझों के, वैत से-लता से, छाल से, वरना से, रस्सी से, छ. ( तत्थ ण जे साइए अपज्जवसिए से ण सिद्धाणं) सिद्ध न प्रशान। via सा अपयसित सय छे. ( तत्थ पंजे से साइए सपज्जवसिए से गं चउविहे पण्णत्ते-तजहा ) तेमांना रे साहि समय पसित मध छे, तेना नीय प्रभाले २ ४२ छ-(अलावणबधे, अल्लियावणवधे, सरीरय धे, सरीरप्पओगबंधे) (१) मासान मच(२) मालीन अध, (3) शरी२ मा भने (४) शरीर प्रयोग ५५ (से कि त आलावणवधे) 3 महन्त ! मापन धनु स्व३५ छ ? (आलावणबंधे जणं तणभाराण वा, कठुभाराण वा, पत्तभाराण वा, पलालभाराण वा, वेल्लभाराणवा वेत्तलयावाग-वरत्त-रज्जु-वल्लि-कुस दब्भमाइएहि आलावणबंधे समुप्पज्जइ) गौतम ! न म ते छे , २ शासना ભારાને, લાકડાંના ભારને, પાનના ભારને, ધાન્યરહિત પરાળની ગાંસડીને લતાએના ભારને, લતાઓથી, છાલથી, ચામડાની દોરીથી, શણ આદિની દેરીથી, કઈ વેલથી, નિમૅળ દર્ભોથી અને સમૂળ દર્ભોથી બાંધવાથી થાય છે. એટલે કે ઘાસ વગેરેના ભારાને લતા આદિ વડે જે બાંધવાનું થાય છે, તેને આલા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy