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________________ भगवतीसूत्र आचार्यप्रत्यनीकः, उपाध्यायप्रत्यनीकः, स्थविरमत्यनीकः, गतिं खलु भदन्त ! प्रतीत्य कति प्रत्यनीकाः प्रज्ञप्ताः? गौतम! त्रयः प्रत्यनीकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-इहलोकपत्यनीकः, परलोकप्रत्यनीकः, द्विधा लोकपत्यनीकः, समूहं खलु भदन्त ! प्रतीत्य कति प्रत्यनीकाः, प्रज्ञप्ताः ? गौतम !, त्रयः प्रत्यनीकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथाकुलप्रत्यनीकः, गणमत्यनीकः, संघप्रत्यनीकः, अनुकम्पा प्रतीत्य पृच्छा ? गौतम ! त्रयः प्रत्यनीमाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-तपस्विप्रत्यनीकः, ग्लानप्रत्यनोकः, शैक्षप्रत्यगये हैं। (तं जहा) जो इस प्रकार से हैं-(इहलोगपडिणीए, परलोगपडिणीए, दुहओलोगपडिणीए) इह लोकप्रत्यनीक, परलोकप्रत्यनीक और उभयलोकप्रत्यनीक। ( समूहण्णं भंते! पडुच्च कइ पडिणीया पण्णत्ता) हे भदन्त ! समूह को लेकर कितने प्रत्यनीक कहे गये हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (तओ पडिणीया पण्णत्ता) समूह को लेकर तीन प्रत्यनीक कहे गये हैं। 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं-'कुलपडिणीए, गणपडिणीए, संघपडिणीए' कुलप्रत्यनीक, गणप्रत्यनीक और संघप्रत्यनीक 'अणुकंपं पडुच्च पुच्छा' हे भदन्त ! अनुकम्पा को लेकर कितने प्रत्यनीक कहे गये हैं ? 'गोयमा' हे गौतम ! 'तो पडिणीया पण्णसा' अनुकम्पा को लेकर तीन प्रत्यनीक कहे गये हैं 'तं जहा' जो इस प्रकार से है ' तस्सिपडिणीए, गिलाणपडिणीए, सेहपडिणीए' तपस्वीप्रत्यनीक, ग्लानप्रत्यनीक और शैक्षप्रत्यनीक । 'सुयणं भंते ! ३) प्रत्यना: ह्या छ-( तजहा) तत्र प्रत्यनी नीय प्रमाणे छ-( इहलोग पडिणीए, परलोगपडिणीए, दुहओलोगपडिणीए) (१) Usas प्रत्यनी (२) ५२ प्रत्यानी मन (3) लय प्रत्यना. (समूहण्ण भंते ! पडुच्च कह पडिणीया पण्णता) महन्त ! सभडनी અપેક્ષાએ કેટલા પ્રત્યેનીક કહ્યા છે? (गोयमा !) हे गौतम ! ( तओ पडिणीया पण्णत्ता-तंजहा ) सनी अपेक्षा नाय प्रभा र प्रत्यना: ४॥ छ-( कुलपडिणीए, गणपडिणीए, संघपडिणीए) (१) युग प्रत्यनी, (२) गण प्रत्यनीअनेस प्रत्यानी. " अणुकंपं पडुच्च पुच्छा ?" महन्त ! मनु४ पानी अपेक्षा सा પ્રત્યેનીક કહ્યા છે? “गोयमा! " गौतम! " तो पडिणीया पण्णता-तजहा " मनुपानी अपेक्षा नाय प्रभारी त्रय प्रत्यनी हा छ-" तवस्सि रडिणीए गिलाणपडिणीए, सेह पडिणीए " त५६ प्रत्यनी (२) वन अत्यनी भने (३) शेक्ष प्रत्यनाs. (सुयण्ण भते पुच्छा) 3 ward ! श्रुतनी अपेक्षा या श्री. भगवती सूत्र :७
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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