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श्री भगवती सूत्र भा० सातवें की विषयानुक्रणिका
विषय
१-३
४-१५ १६-२७ २८-७५
९४-१२४ १२५-१५४
अनुक्रमांक
आठर्वे शतकका आठवां उद्देश १ आठवें उद्देशेका विषयविवरण २ गुर्वादिकपत्यनीकके स्वरूपकानिरूपण ३ व्यवहार के स्वरूपका निरूपण ४ कर्मबन्ध के स्वरूपका निरूपण ५ सांपरायिक कर्मबन्ध के स्वरूपका निरूपण ६ कर्म-प्रकृति और परीपह के स्वरूपका वर्णन ७ उष्णपरीषह के हेतुभूत सूर्यका निरूपण
नववा उद्देशा ८ नववें उद्देशेका संक्षिप्तविषयविवरण ९ बन्धके स्वरूपका निरूपण १० विस्रता बन्धके स्वरूपका निरूपण ११ प्रयोगबन्ध के स्वरूपका निरूपण १२ औदारिक शरीर प्रयोगबन्ध का वर्णन १३ चैक्रियशरीर प्रयोगबन्धका वर्णन १४ वैक्रिय शरीर गमनागमनविषयक प्रयोगबन्धका वर्णन १५ आहारक शरीर प्रयोगबन्धका वर्णन १६ तैजस शरीर प्रयोगबन्धका वर्णन १७ कार्मणशरीर प्रयोगबन्धका निरूपण १८ औदारिकादि बन्धों के परस्पर में सम्बन्धका निरूपण १९ औदारिक आदि शरीरों के देशवन्धक, सर्वबन्धक, और अबन्धक के अल्पबहुत्वका कथन
दशवां उद्देशा २० दशवें उद्देशे का संक्षिप्तविषयविवरण २१ शील श्रुतादिका निरूपण २२ आराधनाका निरूपण
१५५-१६० १६१-१६१ १६२-१८० १८१-२२८ १२९-२८२ २८३-३२० ३२१-३४७ ३४८-३६१ ३६२-३७२ ३७३-४११ ४१२-४३६
४३७-४४५
४४६-४४८ ४४९-४६३ ४६४-४८८
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭