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________________ - प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.१ सू.४ सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् ७९ जाव जे पजत्तसबह सिद्ध-अणुत्तरोववाइय० जाव परिणया ते सोइंदिय-चक्खिदिय-जाव परिणया (दंडगा ४)॥ सू. ५॥ ___ छाया-ये अपर्याप्तकाः सूक्ष्मपृथिवीकायिकैकेन्द्रियप्रयोगपरिणताः, ते स्पर्शेन्द्रियप्रयोगपरिणताः । ये पर्याप्तकाः सूक्ष्मपृथिवीकायिका एवमेव । ये अपर्याप्तकाः बादरपृथिवीकायिकाः एवमेव, एवं पर्याप्तका अपि । एवं चतुष्केण भेदेन यावत् वनस्पतिकायिकाः । ये अपर्याप्तकाः द्वीन्द्रियप्रयोग____ 'जे अपजत्ता सुहुम पुढविकाइयएगिदिय' इत्यादि । सूत्रार्थ-(जे अपजत्ता सुहुम पुढविकाइय एगिदिय०) जो पुद्गल अपर्याप्तक मूक्ष्मपृथिवीकायिक एकेन्द्रियप्रयोगसे परिणत हैं (ते फासिं. दियपओगपरिणया) वे पुद्गल स्पर्शन इन्द्रियप्रयोगसे परिणत होते हैं । (जे पज्जत्ता सुहुमपुढविकाइया एवं चेव) इसी तरह जो पुद्गल पर्याप्तक सूक्ष्मपृथिवीकायिक एकेन्द्रियप्रयोगपरिणत होते हैं, वे पुद्गल भी एक स्पर्शन इन्द्रिय प्रयोगसे परिणत होते हैं । (जे अपज्जत्ता बायर पुढविकाइया एवंचेव, एवं पज्जत्तगा वि, एवं चउक्केणं भेएणं जाव वणस्सइकाइया) जो पुद्गल अपर्याप्त बादरपृथिवीकायिक प्रयोगपरिणत होते हैं वे भी इसी प्रकारसे होते हैं। जो पुद्गल पर्याप्तक बादर पृथिवीकायिक प्रयोगपरिणत होते हैं वे भी इसी प्रकार के होते हैं । इसी तरहके चार भेद यावत् वनस्पतिकायिकोंके जानना चाहिये। 'जे अपज्जत्ता मुहुम पुढविकाइयएगिदिय' त्याह सूत्राथ - (जे अपज्जत्ता · मुहमपुढविकाइयएगिदिय.) २ पुग। अपर्याप्त सक्षमपृथ्वी।यि४ मेन्द्रिय प्रयोगथा परिणत डाय छे, (ते फासिदिय पओगपरिणया) ते ५ो २५शेन्द्रिय प्रयोगथी परशुत डाय छ, (जे पज्जत्ता मुहुम पुढवीकाइया एव चेव) मे ॥ प्रमाणे के पहले पर्याप्त सक्ष्भवीयि४ मेन्द्रिय प्रयोगપરિણત હોય છે, તે પુદગલો પણ એકલી પશેન્દ્રિયના પ્રયોગથી જ પરિણત હોય છે. (जे अपज्जत्ता बायरपुढविकाइया एवं चेव, एवं पज्जत्तगा वि, एवं चउक्केणं भेएणं जाव वणस्सइकाइया) ने Yuan मर्याप्त माRYथ्वी।यि प्रयोगपरिशुत હોય છે. તેઓ પણ એ જ પ્રકારના (સ્પર્શેન્દ્રિય પ્રયોગપરિણત) હોય છે. જે પુદગલ પર્યાપ્તક બાદરપૃથ્વીકાયિક પ્રગપરિણત હોય છે, તેઓ પણ એ જ પ્રકારના હોય છે. અપ્રકાયિક, તેજ કાયિક, વાયુકાયિક અને વનસ્પતિકાયિકના ઉપયુક્ત ચારે ભેદ વિષે પણ श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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