________________
भगवतीमूने ततः खलु ते अन्यथिका येनैव स्थावरा भगवन्तेस्तेनैव उपागच्छन्ति, उपा. गम्य तान स्थविरान् भगवतः एवम् अवादिषुःयूयं खलु आर्याः ? त्रिविधं त्रिविधेन असंयता विरतापतिहता यथा सप्तमशतके द्वितीयोद्देशके यावत् एकान्तवालाश्चापि भवथ ? ततः खलु ते स्थविराः भगवन्तस्तान् अन्ययूथिकान एवम् अवादिषुःजातिसंपन्न कुलसंपन्न इत्यादि विशेषणों से युक्त थे जैसा कि द्वितीय शतक में वर्णन किया गया है उस माफिक वे यावत् जीवन की आशा और मरण के भय से रहित थे। उस समय वे श्रमण भगवान महावीर के आसपास ऊँचा घुटना किये हुए और नीचा मस्तक नवाये हुए ध्यानरूप कोठे में विराजमान थे। तथा संयम और तप से अपने आपको भावित किये हुए थे। (तएणं ते अन्नउत्थिया जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छंति) इसके बाद वे अन्यतीर्थिकजन जहां स्थविर भगवान् विराजमान थे वहां पर आये (उवागच्छित्ता ते थेरे भगवंते एवं वयासी) वहां आकर उन अन्यतीर्थिकजनोंने उन स्थविर भगवंतो से ऐसा कहा-(तुब्भेणं अजो तिविहं तिविहेणं अविरय अप्पडिहय जहा मत्तमसए विइए उद्देमए जाव एगंतबाले यावि भवह) हे आर्यो ! तुम सब विविध प्राणातिपात आदि को त्रिविधरूप से करते हुए असंयत हो, अविरत हो
और अपतिहत-पापकर्मवाले हो-इत्यादि जैसा सातवें शत्तक के द्वितीय उद्देशक में कहा है उस तरह से यावत् एकान्तबाल भी हो । (तएणं (તેમના ગુણોનું વર્ણન બીજા શતકમાં આપવામાં આવ્યું છે), જેઓ જીવનની આશા અને મરણના ભયથી રહિત હતા, એવા તે સ્થવિરે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરની આસપાસ ઘૂંટણ ઊંચી રાખીને અને નીચે મસ્તકે ધ્યાનરૂપ કઠામાં વિરાજમાન હતા. તેઓ सयम भने तपथी पाताना मामाने भावित री २था ना. (तएणं-ते अभउत्थिया जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छति) त्या२ मा ते मन्यताय" oria स्थावर भगत ता त्यो माया (उवागच्छित्ता ते थेरे भगवंते एवं वयासी) ત્યાં આવીને તે અન્યતાયિક લે તે સ્થવિર ભગવંતને આ પ્રમાણે કહ્યું(तुम्भेणं अजो तिविहं तिविहेणं असंजय, अविरय, अप्पडिहय जहा सत्तमसए बिडए उसए जान एगंतबाले यावि भवह ) 3 मार्या ! विविध પ્રાણાતિપાત આદિનું ત્રિવિધરૂપે સેવન કરતા એવા તમે બધાં અસંયત છે, અવિરત છે, અપ્રતિહત પાપકર્મવાળા છે, ઇત્યાદિ સમસ્ત કથન સાતમાં શતકના બીજા ઉદ્દેશકમાં કહ્યા પ્રમાણે સમજવું, “તમે એકાન્તબાલ (સંપૂર્ણરૂપે અજ્ઞાનો પણ છે,
श्री. भगवती सूत्र: