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________________ ७३२ भगवतीस्त्रे आधिकरणिकी क्रिया नियमतः क्रियते, यस्य आधिकरणिकी क्रिया क्रियते, तस्यापि कायिको क्रिया नियमतः क्रियते, इति. तथा आद्यकियात्रयसद्भावे उत्तरक्रियादयं भजनया भवति, तदुक्तम्-'जम्स णं जीवस्स काइया किरिया कज्जइ, तस्स पारियावणिया सिय कज्जइ सिय नो कन्जा' इत्यादि, यस्य खलु जीवस्य कायिकी क्रिया क्रियते तस्य पारितापनिकी स्यात् क्रियते, स्यात् नो क्रियते, इति, एवञ्च यदा कायव्यापारद्वारेणाधक्रियात्रय एवं वर्तते, न तु परितापनं, न वा प्राणातिपातं करोति तदा त्रिक्रियःएवेत्यतोऽपि 'स्यात् त्रिक्रियः' इत्युक्तम्, यदा तु परिमें क्रियाका सद्भाव होता है. प्रज्ञापनाके बाईसवें क्रियापद में ऐसाही कहा है-'जस्स णं जीवस्स काइया किरिया कज्जइ, तस्स अहिंगरणिया किरिया नियमा कज्जइ, जस्स अहिगरणिया किरिया कज्जइ, तम्स वि काइया किरिया नियमा कज्जा' जिस जीवके कायिकी क्रिया होती है उसके नियमसे आधिकरणि की क्रिया होती है और जिसके आधिकरणिकी क्रिया होती है उसके भी नियमसे कायिकी क्रिया होती है इत्यादि तथा आदिकी तीन क्रियाओंके सद्भाव में उत्तरकी दो क्रियाओंकी भजना होती है-सोही कहा है- ' जस्म णं जीवस्स काइया किरिया कज्जइ, तस्म पारियावणिया सिय कज्जई, सिय नो कज्जइ', इत्यादि-इस तरह कायव्यापार के द्वारा जीव जब आधक्रियात्रय में ही रहता है परितापन और प्राणातिपात वह नहीं करता है तब वह तीन क्रियाओंवालाही होता है-इस तरहसे भी यह कदाचित् तीन क्रियाओंयान! AERIA डोय छ प्रज्ञापनाना मावसभा यापमा पशु मेraj -'जस्स गं जीवस्स काइया किरिया कज्जइ, तस्स अहिगरणिया किरिया नियमा कज्जइ, जस्स अहिगरणिया किरिया कज्जइ, तस्स वि काइया किरिया नियमा कज्जइ' જે જીવ વડે કાયિકી ક્રિયા થાય છે. તે જીવ વડે આધિકણિકી ક્રિયા પણ નિયમથી જ થાય છે. જે જીવ વડે અવિકણિકી ક્રિયા થાય છે, તેના વડે કાયિક ક્રિયા પણ નિયમથી જ થાય છે,' ઇત્યાદિ– તથા પહેલી ત્રણ ક્રિયાઓના સદભાવમાં છેહલી એ ક્રિયાઓ विधे याय. म पात नीयना सूत्रांमi रैछ- 'जस्स णं जीवस्स काइया किरिया कज्जइ, तस्स परियावणिया सिय कज्जइ, सिय नो कज्जा' त्याcि. भाशत आयव्यापार ६२१ पारे 94 पहेली ज्या કરે છે, પણ પરિતાપન અને પ્રાણાતિપાત કરતું નથી, ત્યારે તેને ત્રણ કિયાવાળા જ श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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