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भगवतीसूत्रे तैजसकार्मणप्रयोगपरिणताः । एवं यावत् चतुरिन्द्रियाः पर्याप्ताः, नवरं ये पर्याप्तकवादरवायुकायिकैकेन्द्रिय प्रयोगपरिणतास्ते औदारिकवैक्रियतैजसकार्मणशरीर-यावत्-परिणताः, शेष तदेव । ये अपर्याप्तकरत्नप्रभापृथिवीनै रयिकपञ्चे
और कार्मण इनतीन शरीरोंके प्रयोगोंसे परिणामको प्राप्त हुए होते हैं । (जे पज्जत्ता सुहुम० जाव परिणया ते ओरालियतेयाकम्मगसरीरप्पओगपरिणया एवं जाव चउरिंदिया पज्जत्ता) तथा जो पुद्गल पर्याप्तक सूक्ष्मपृथिवीकाय एकेन्द्रियप्रयोगपरिणत हैं वे औदारिक, तेजस
और कार्मण इनतीन शरीरोंके प्रयोगोंसे परिणत हुए होते हैं । इसी तरहसे यावत् चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंके विषय में भी जानना चाहिये । (णवरं-जे पज्जत्तबायरवाउकाइयएगिदियपओगपरिणया ते ओरालियवेउब्धिय तेयाकम्मसरीर जाव परिणया सेसं तं चेव) परन्तु यहां पर जो विशेषता है वह यह है कि जो पुद्गल पर्याप्त बादर वायुकायिक एकेन्द्रियप्रयोगपरिणत हैं वे औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण इन ४ शरीरोंके प्रयोगोंसे परिणत हुए होते हैं। बाकीका और सबकथन पहिले जैसा ही जानना चाहिये । (जे अपज्जत्तरयणप्पभा पुढवीनेरइय पंचिंदियपओग परिणया ते वेउविय तेयाकम्मसरीरप्पओगपरिणया) जो पुद्गल अपर्याप्तक रत्नप्रभापृथिवीशरी|ना प्रयोगथा परिमान पामेल खाय छे (जे पज्जत्ता सुहम. जाव परिणया ते ओरालिय तेयाकम्मगसरीरप्पओगपरिणया-एवं जाव चउरिदिया पज्जत्ता) तथा प्रर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीय मेन्द्रिय प्रयोगपरिणत पुरस डाय छ, તેઓ દરિક, વૈજસ અને કામણ એ ત્રણ શરીરના પ્રયોગથી પરિણમન પામેલાં डाय छे. २. १ प्रमाणे यतुरिन्द्रिय पर्याप्त सुधीन। ७३॥ विषे समा. णवरं - जे पज्जत्तवायरवाउकाइयएगिदियपओगपरिणया ते ओरालियवेउन्धियतेयाकम्मसरीर जाव परिणया - सेसं त चेव) ५९४ मी. मेटली ४ विशेषता સમજવી કે જે પુગલ પર્યાપ્તક બાદર વાયુકાયિક એકેન્દ્રિય પ્રયોગપરિણત હોય છે, તે ઔદારિક, વૈક્રિય, તૈજસ અને કાર્માણ, એ ચાર શરીરના કોગથી પરિણત થયેલાં होय छे. पाश्रीन समस्त ४थन माण या प्रमाणे र सभा. (जे अपज्जत्त र यणप्पमा पुडयोनेरइयपंचिंदियपओगपरिणया ते वेउब्बियतेयाकम्म सरीरप्पओगपरिणया ) २५५ति २ri पृथ्वीना२४ ५'येन्द्रिय प्रयापरिणत
श्री. भगवती सूत्र :