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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.१ मू. ३ सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् ५५ देवपञ्चेन्द्रियप्रयोगपरिणताः, अपर्याप्तकासुरकुमार भवनवासि देवपञ्चेन्द्रियप्रयोगपरिणताश्च, 'एवं जाब थणियकुमारा पज्जत्तगा अपज्जत्तगाय' एवम् असुरकुमारभवनपतिदेववदेव यावत्-नागकुमार सुवर्णकुमार-विद्युत्कुमारा-ऽग्निकुमार-द्वीपकुमारो-दधिकुमार-दिक्कुमार-वायुकुमार-स्तनितकुमारभवनवासिदेवपञ्चेन्द्रियप्रयोगपरिणताः पुद्गलाः पर्याप्तकाश्च अपर्याप्तकाश्च भवन्ति । ‘एवं एएणं अभिलावेणं दुयएणं भेएणं पिसाया य जाव गंधव्या' एवम् असुरकुमारादिभवनपतिदेववदेव एतेन अभिलापेन उपर्युक्तालापक्रमेण द्विकेन द्विविधेन पर्याप्तकापर्यतकरूपेण भेदेन पिशाचाश्च यावत-भूत-यक्ष-राक्षस-किन्नर-किम्पुरुष-महोरग-गन्धर्ववानव्यन्तरप्रयोगपरिणताः पुद्गलाः पर्याप्तका अपर्याप्तकाश्च प्रज्ञप्ताः, 'चंदा जाव ताराविमाण' चन्द्राः यावत्-मूर्य-ग्रह-नक्षत्र-ताराविमानज्योतिषिकदेवप्रयोग न्द्रिय प्रयोगपरिणत पुद्गल और अपर्याप्तक असुरकुमार भवनपतिदेव पंचेन्द्रियप्रयोगपरिणतपुद्गल, (एवं जाव थणियकुमारा पज्जत्तगा अपज्जत्तगाय) असुरकुमार भवनपतिदेवोंकी तरह ही यावत् नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, दीपकुमार, उदधिकुमार, दिक्कु मार, वायकुमार, और स्तनितकुमार ये सब भवनवासिदेव पंचेन्द्रिय प्रयोगपरिणतपुद्गल पर्याप्तक और अपर्याप्तक होते हैं। (एवं एएणं अभिलावेणं दुयएणं भेएणं पिसाया य जाव गंधव्वा) असुरकुमारादि भवनपतिदेव जिस प्रकारसे पर्याप्तक और अपर्याप्तक कहे गये हैं उसी तरहसे पिशाच यावत् भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गंधर्व ये जो वानव्यन्तर प्रयोगपरिणत पुद्गल हैं वे भी पर्याप्तक एवं अपर्याप्तक होते हैं । 'चंदा जाव ताराविमाण' चंद्र कुमार०, (१) पर्याप्त मसुमार भवनपति पयन्द्रिय प्रयोगपरिणत पुल અને (૨) અપર્યાપ્તક અસુરકુમાર ભવનપતિદેવ પંચેન્દ્રિય પ્રાગપરિણત પુદગલ. 'एवं जाव थणियकुमारा पज्जत्तगा, अपज्जत्तगा य' असु२शुभा२ भवनपतिनी જેમ જ નાગકુમાર, સુવર્ણકુમાર, વિઘુકુમાર, અગ્નિકુમાર, દ્વીપકુમાર, ઉદધિકુમાર, દિકૂકુમાર અને વાયુકુમાર, સ્વનિતકુમાર, આ બધા ભવનપતિ દેવે પણ પર્યાપ્તક અને अपर्याप्त डाय छे. 'एवं एएणं अभिलावेणं दुयएणं भेएणं पिसाया य जाव गंधवा' असुरमा भवनपतिवान म पति ने अपर्याप्त ४i छ को २४ પ્રમાણે પિશાચ, ભૂત, યક્ષ, રાક્ષસ, કિન્નર, કિમ્બુરુષ, મહારગ અને ગંધર્વ, એ આઠે वानभ्यन्तरप्रयोगपरिणत पुगत पर पर्याप्त अने अपर्याप्त छ. 'चंदा जाव श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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