________________
५५२
भगवतीमत्रे अस्थिय तेढुकविढे अंबाडग माउलुंगबिल्लेय.
आमलगफणस दाडिम आसोत्थे उंबरवडे य" ॥२॥ अथ किं तत् बहुबीजकारः अनेकविधा प्रज्ञप्ताः, तद्यथा
अस्थिकतिन्दुककवित्थ अम्रातकमातलिङ्गविल्वश्च ।
आमलकफनसदाडिमपश्वत्थः उदुम्बरवटं च ॥१॥ अन्तेचाह-एएसिं मूला वि, असंखेजजीविया कंदावि, खंधावि, तया वि, सालावि, पवालावि, पत्ता, पत्तेयजीरिया, पुप्फा अणेगनीविया फला बहुबीयग त्ति,' इत्यन्तं यावत्पदेन संग्राह्यम् । तदुपसहरमाह-'सेत्तं बहुबीयगा, सेत्तं असंखेजजीविया' हे गौतम ! तदेते उपर्युक्ताः बहुबीजकाः अनेक बीजवन्तः तदेने उपरिवर्णिताः एकबीजवन्तः अनेकबीजवन्तश्च वृक्षविशेषाः असंख्येयजीविकाः असंख्यातजीवन्तो भवन्ति, गौतमः पृच्छति--से कि तं अणंतजीविया ? हे भदन्त । तत्-अथ किं ते अनन्तजीविकाः कतिविधाः खलु अनन्तजीवन्त इति प्रश्नः, भगवानाह- 'अणंतजीविया अणेगविहा पण्णत्ता' हे गौतम ! अनन्तजीविकाः अनन्तजीववन्तः अनेकविधाः प्रज्ञप्ताः, अनेक प्रकार के होते हैं । 'तजहा' जैसे- 'अत्थिय तेंदुकविट्ठ अंवाडग माउलुगविल्लेय बि आमलग फणस दाडिम आमोत्थे उवरवडे य २ अन्तमें कहा गया है- 'एएमि मूला वि असंखेजजीविया कंदावि, खंधावि, तयावि, साला वि, पलाला वि पत्ता, पत्तेय जीविया, पुप्फा अणेगजीविया फला बहुबीयग त्ति' यह पूर्वोक्त पाठ यहाँ 'यावत्' पदसे ग्रहण हुआ है । ये उपयुक्त एक बीजवाले वृक्ष और अनेक बीजवाले वृक्ष सब असंख्यात जीववाले होते हैं । ____ अब गौतन स्वामी प्रभुसे पूछते हैं- 'से किं तं अणंतजीविया' हे भदन्त ! अनंतजीववाले वृक्ष कितने प्रकार के होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'अणंतजीविया अणेगविहा पण्णत्ता' हे गौतम ! अनंत जीववाले उत्तरभ प्रभु छ त भने ४२ना डाय , 'त जहो' भो ‘अत्थियते दंकविट त्यादि. मा पहेला वायो 8 महीमा-यावत् ५४था अहुय थयो छ. આ ઉપર્યુકત એક બીજવાળા વૃક્ષ અને અનેક બીજવાળા વૃક્ષ સઘળાં અસંખ્યાત જીવવાળા डाय छे. प्रश्न:- ‘से किं त' अणंतजीविया' भगवान् । सन 194all gक्ष 32८॥ ४२॥ हाय छे. उत्तर :- ' अणंतजीविया अणेगविहा पण्णत्ता' हे गौतम मानता क्ष (sel) भने न होय छे.' त जहाभ ' आलुए
श्री. भगवती सूत्र :