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________________ पमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.२ २. ७ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४१३ संपरायस्य कषायस्य लोभांशरूपस्योदयो भवति तत् सक्षमसंपरायचारित्रं तस्य लब्धिः सूक्ष्मसंपरायचारित्रलब्धिः, तच्चारित्रं द्विविधं-विशुद्धयमानकं, संक्लिश्यमानकं च तत्र विशुद्धयमानचारित्रं क्षपकश्रेण्याम् उपत्रमश्रेण्याचारोहकस्य भवति, संक्लिश्यमानकच उपशमश्रेणितः अधःपतितस्य भवति ४, यत्र सर्वथा कषायोदयाभावो भवति तत् यथाख्यातचारित्रमुच्यते, येन प्रकारेण अकषायितया आख्यात यथाख्यातमिति व्युत्पत्तेः, तचापि द्विविधम्उपशमकम्, क्षपकच गौतमः पृच्छति –'चरित्ताचरित्तलद्धी णं भंते ! कइविहा पण्णत्ता' हे भदन्त ! चारित्राचारित्रलब्धिः खलु देशविरतिलब्धिरूपा कतिविधा प्रज्ञप्ता ? भगवानाइ- 'गोयमा! एगागारा पण्णत्ता' हे गौतम ! कषाय-लोभशि का उदय होता है वह सूक्ष्म संपराय चारित्र है। इम चारित्र की प्राप्तिका नाम सूक्ष्म संपराय चारित्रलब्धि है। यह चारित्र दो प्रकार का होता है- एक विशुद्धयमानक और दूसरा संक्लिश्यमानक इनमें विशुद्धयमानकचारित्र क्षपकश्रेणी और उपशमश्रेणीमें चढ़नेवालेको होता है। और संक्लिश्यमानकचारित्र उपशमश्रेणीसे नीचे गिरनेवाले के होता है। जिस चारित्र में कषाय के उदय का सर्वथा अभाव होता है वह यथाख्यातचारित्र है । यथायेन प्रकारेण अकषायितया आख्यातं तत् यथाख्यातं' ऐसी यथाख्यात की व्युत्पत्ति है। यह चारित्र भी दो प्रकारका होता है एक उपशमक और दूसरा क्षपक । अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं चरित्ताचरित्तलद्धीणं भंते ! कइविहा पण्णत्ता' हे भदन्त ! चारित्राचारित्रलब्धि कितने प्रकारकी कही गई हैं ? चारित्राचारित्रलब्धि का तात्पर्य देशचारित्रलब्धिसे है । इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं- 'गोयमा' થાય છે તે ચારિત્ર્યનું નામ સૂક્ષમ સંપરાય ચારિત્ર્ય લબ્ધિ છે. આ ચારિત્ર્ય બે પ્રકારનું છે. ૧ વિશુદ્ધમાનક અને ૨ સંકલેશ્યમાનક તેમાં વિશુદ્ધમાનક ચારિત્ર્ય ક્ષપકશ્રેણી અને ઉપશમ શ્રેણમાં ચડવાવાળાઓને હોય છે અને સંકલયમાન ચારિત્ર્ય ઉપરામશ્રીથી નીચે જવાવાળા હોય છે જે ચારિત્ર્યમાં કષાયના ઉધ્યને સર્વથા समाप डायत यथाज्यात यारिय. 'यथा-पेन प्रकारेण अकषायितया आख्यातं तत् यथाख्यातं ' मेवी यया यातनी व्युत्पत्ति . ते यात्रिय पर २नु छ. ! ५शम भने २ १५४ प्रश्न :- चरित्ताचरित्तलद्धीणं भंते ! काविहा पण्णत्ता' मन्त! यारियायामि alan प्रहारनी ही छ ? (यारिया यारिय सचिर्नु तात्पर्य हेश यारिय सन्धिया छ) 6:- 'गोयमा' है गौतम! 'एगागारा पण्णत्ता' ३२ पिरती ३५ ते यारियायायि मे श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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