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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.२ मू. ६ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ३९९ ये त्रिज्ञानिनस्ते आभिनिबोधिकज्ञानिनः, श्रुतज्ञानिनः, अवधिज्ञानिनः, मनःपर्यवज्ञानिनः । तस्य अलब्धिकाः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः ? अज्ञानिनः ? गौतम ! ज्ञानिनोऽपि, अज्ञानिनोऽपि, एवम् अवधिज्ञानव नि चत्वारि ज्ञानानि त्रीणि अज्ञानानि भजनया । मनःपर्यवज्ञानलब्धिकाः खल पृच्छा ? गौतम ! ज्ञानिनः, नो अज्ञानिना, सन्ति एकके त्रिज्ञानिनः सन्ति ज्ञान वाले होते हैं और कितनेक जीव चार ज्ञानवाले होते हैं । ( जे तिन्नाणी-ते अभिणियोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी) जो तीन ज्ञानवाले होते हैं. वे आभिनिबोधिक ज्ञानवाले होते हैं, श्रुतज्ञानवाले होते हैं और अवधिज्ञानवाले होते हैं । (जे चउनाणी-ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी, मणपज्जवनाणी) जो चार ज्ञान वाले होते हैं-वे मतिज्ञानवाले श्रुतज्ञानवाले, अवधिज्ञानवाले और मन; पर्यव ज्ञानवाले होते हैं । (तस्स अलद्धिया णं भंते ! जीवा कि नाणी अनाणी) हे भदन्त ! जो जीव अवधिज्ञान लन्धिसे रहित होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (नाणी वि, अन्नाणी वि) हे गौतम ! अवधिज्ञान लब्धि रहित जीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं । (एवं ओहिनाणवज्जाइं चत्तारि नाणाई, तिनि अन्नाणाइं भयणाए) इस तरह अवधिज्ञान लब्धि रहित ज्ञानी जीवों के अवधिज्ञानको छोड कर चार ज्ञान और अज्ञानी जीवों के तीन अज्ञान भजना से होते हैं। मणपजवनाणलद्धियाणे पुच्छा। हे भदन्त! मनःपर्यव ज्ञान लब्धिवाले जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते 4 छे ४४४ ७१ यार ज्ञानवा होय छे. 'जे तिन्नाणी ते आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी ओहिनाणी' नेत्र ज्ञानवा छे मालिनियमाथि सान श्रुतज्ञान,भने मधिज्ञानवालीय . ते चउनाणी ते आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी ओहिनाणी, मणपज्जवनाणी' ने या२ ज्ञानवा डाय छे. ते मतितान, श्रतज्ञान पशिान मन मन:पयशान मे यार ज्ञानपाडाय छे. 'तस्स अलद्धियाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी सह-त! २१ अवधि ज्ञान सन्धिरहित लायछ त सानी डाय
मसानी ? 'नाणी वि अन्नाणी वि' गौतम ! अवविज्ञान विनाना ०१ शानी पडाय छ भने अज्ञानी पडाय छ. 'एवं ओहियनाणवज्जाइं चत्तारिनाणाई, तिनि अन्नाणाई, भयणाए' मे शत मधिशान सन्धिविनानावाने અવધિજ્ઞાનને છોડીને ચાર જ્ઞાન અને અજ્ઞાની જીવોને ત્રણ અજ્ઞાન ભજનાથી હોય છે. 'मणपज्जवनागलद्धियाणं पुच्छा' मन्त! भन: ५ ज्ञान evel 04
श्री. भगवती सूत्र :