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________________ - - प्रमेगचन्द्रिका टीका श.८ उ.२ मू.६ ज्ञानभेदनिरूपणम् नोअभवसिद्धिकाः खलु सिद्धा जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति, अज्ञानिनो वा ! भगवानाह- 'जहा सिद्धा ७' हे गौतम ! यथा सिद्धाः केवलज्ञानवन्तस्तथा नोभवसिद्धिकनोअभवसिद्धिका अपि सिद्धाः केवलज्ञानवन्तो भवन्ति, नो द्वयादिज्ञानवन्तो, नो वा अज्ञानवन्तो भवन्ति ।। __अथ-नवमं संज्ञिद्वारमोह 'सन्नीणं पुच्छा' संज्ञिनः खलु जीवाः किं ज्ञानिनः किं वा अज्ञानिनो भवन्ति ? इति पृच्छा प्रश्नः, भगवानाह'जहा सइंदिया' हे गौतम ! यथा सेन्द्रियाः भजनया चतुर्सानिन;, व्यज्ञानिनश्वोक्तास्तथा संझिनोऽपि भजनया चतुर्जानिनः व्यज्ञानिनश्च वक्तव्याः, 'असन्नी जहा बेइंदिया' असंज्ञिनो जीवा यथा द्वीन्द्रिया द्विज्ञानिनः; अन्नाणो' हे भदन्त ! जो जाव न भवमिद्धिक हैं और न अभव. सिद्धिक हैं, ये क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं? नोभवसिद्धिक और नोअभवसिद्धिकजीव सिद्धजीव होते हैं, अतः ये 'जहा सिद्धा' इस सूत्र द्वारा इस रूपसे प्रकट किये गये हैं। कि ये सिद्धोंकी तरह ज्ञानी ही केवलज्ञानवाले ही होते हैं अज्ञानी नहीं होते हैं। और न ये दो आदि ज्ञानवाले ही होते हैं । अब सूत्रकार नौववां संज्ञिद्वारका कथन करते हैं इसमें गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'सन्नी णं पुच्छा' हे भदन्त ! जो संज्ञीजीव हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं ? या अज्ञानी होते हैं उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'जहा सइंदिया' हे गौतम ! सेन्द्रियजीव जिस प्रकारसे भजनासे चारज्ञानवाले और तीन अज्ञानवाले कहे गये हैं, उसी तरहसे संज्ञीजीव भी भजनासे चार ज्ञानवाले और तीन अज्ञानवाले कहे गये हैं, 'असन्नीजहा बेइंदिया जैसे द्वीन्द्रियजीव दो ज्ञानवाले और दो अज्ञानवाले कहे गये हैं अन्नाणी' हे म..! मे ७ सिद्धि समवसिद्धि साता नथी ते॥ ७॥ જ્ઞાની હોય છે કે અજ્ઞાની હોય છે? ને ભવસિદ્ધિક અને અભવસિદ્ધિક જીવ સિદ્ધ होय छ. से जहा सिद्धा' से सू ५४६२॥ नियमित ४२ सिद्धोनी भाई હોય છે. તેઓ સિદ્ધોની માફક કેવળજ્ઞાનવાળા જ હોય છે. અજ્ઞાની હોતા નથી તેમજ બે કે ત્રણ જ્ઞાનવાળા પણ હોતા નથી. હવે સૂરકાર નવમા સંસીદ્વારને ઉદ્દેશીને કહે છે तभा गौतम स्वामी मे पूछे 'सन्नीणं पुच्छा' महन्त रे संज्ञा ७१ होय छे ते शु ज्ञानी हाय छ है मज्ञानी ? उत्तर :- 'जहा सइंदिया' હે ગૌતમ ! સેન્દ્રિય જીવ જે રીતે ચાર જ્ઞાન અને ત્રણ અજ્ઞાનવાળા કહયા છે એ જ રીતે સંસીજીવ પણ ભજનાથી ચાર જ્ઞાન અને ત્રણ અજ્ઞાનवा या छ. ' असन्नी जहा बेइंदिया वी शतमे दिय ७१ जानवा अने. श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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