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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८.२ म.५ ज्ञानभेदनिरूपणम्
३७५ पादितास्तथा तेऽपि पञ्चज्ञानिनः, त्र्यज्ञानिनश्च भवन्ति । गौतमः पृच्छति'अकाइया णं भंते ! जीवा कि नाणी, अन्नाणी ? हे भदन्त ! अगायिकाः, नास्ति काय औदारिकादिलक्षणो येषां ते अकायाः, अकाया एव अकायिकाः खलु जीवाः किम् ज्ञानिनः ? किं वा अज्ञानिनो भवन्ति ? भगवानाह'जहा सिद्धा' हे गौतम ! यथा सिद्धाः प्रतिपादिताः, तथा अकायिका अपि केवलज्ञानलक्षणैकज्ञानिनो भवन्ति । अथ पञ्चमं सूक्ष्मद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति'मुहुमा णं भंते ! जीवा कि नाणी; अन्नाणी ?' हे भदन्त ! सूक्ष्माः खलु जीवाः किं ज्ञानिनः, कि वा अज्ञानिनश्च स्युः ? भगवानाह- जहा पुढविकाइया' हे गौतम ! यथा पृथिवीकायिकाः. नो ज्ञानिनः अपि तु अज्ञानिनो भवन्ति, तत्रापि प्रसकायिक जीव भी पांचज्ञानवाले और तीनअज्ञानवाले हो सकते हैं ऐसा जानना चाहिये । अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'अकाइयाणं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी' हे भदन्त ! जो जीव औदारिक आदिकायसे राहत होते हैं ऐसे अकायिकसिद्ध जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'जहासिद्धा हे गौतम ! जिस प्रकारसे सिद्धजीव प्रतिपादित किये गये हैं अर्थात् सिद्धजीव जैसे केवलज्ञानको लेकर ज्ञानी प्रकट किये गये हैं उसी प्रकारसे अकायिक जीव भी एक केवलज्ञानवाले ही होते हैं अज्ञानी नहीं होते हैं। अब पांचवें सूक्ष्मद्वारको आश्रित करके गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'सुहुमा णं भंते ! जीवा किं नाणी,अन्नाणी' हे भदन्त ! जो सूक्ष्मजीव हैं, वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'जहा पुढविक्काइया' हे गौतम ! जैसे पृथिवीकायिकजीव ज्ञानी नहीं होते हैं अपितु अज्ञानी ही होते हैं अर्थात् मत्यज्ञानी और पY पायताना अने अज्ञान होय छे. प्रश्न :-'अकाइया णं भंते जीरा किं नाणी अन्नाणी' उलगवान! रेलवे मोहा२ि४ मा यथी २डित डाय छ તેવા અકાયિક સિદ્ધ છવ શાની હોય છે કે અજ્ઞાની હોય છે? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ
छ 'जहा सिद्धा' रवीश सिद्धाना विषयमा प्रतिपाइन युछे -अर्थातસિદ્ધ છવ જેવી રીતે કેવળજ્ઞાનને લઇને જ્ઞાની પ્રકટ કરાયેલ છે. તે જ રીતે અકાયિક જીવ પણ એક કેવળજ્ઞાનવાળા હોય છે. અજ્ઞાની હતા નથી. હવે પાંચમા સૂકમદ્વારને आश्रय ४शन गौतम स्वामी प्रसुन से छे छे 'मुहमाणं भंते जीवा कि नाणी अन्नाणी' सूक्ष्म ७३, मगवन! ज्ञानी डाय छे मज्ञानी ? उत्तरमा प्रभु हे 'जहा पुढविकाइया' तमो वीयि ७३नी भा४ मशाना साय छे.
श्री. भगवती सूत्र :