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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. २ मृ. ५ ज्ञानभेदनिरूपणम् ३३९ द्वीपकुमारो - दधिकुमार - दिशाकुमार - वायुकुमार - स्तनितकुमारा अपि विज्ञानिनेा नियमतो भवन्ति, त्र्यज्ञानिनस्तु भजनया के चिद्वयज्ञानिनः, केचिच्च त्रयज्ञानिना भवन्ति इति भावः । गौतमः पृच्छति - 'पुढत्रिकाइयाणं भंते ! किं नाणी अन्नाणी ?' हे भदन्त ! पृथिवीकायिकाः खलु किं ज्ञानिनेो भवन्ति ? अज्ञानिना वा भवन्ति? भगवानाह - 'गोयमा ! नो नाणी, अन्नाणी' हे गौतम! पृथ्वी कायिकाः नो ज्ञानिनेा भवन्ति, अपितु अज्ञानिनेो भवन्ति, जे अन्नाणी ते नियमा अन्नाणी - मइअन्नाणी य, सुयअन्नाणी य' ये अज्ञानिनः पृथिवीकायिकास्ते नियमात् नियमतो द्वयज्ञानिनो भवन्ति - मत्यज्ञानिनश्च श्रुताज्ञानिनश्च । ' एवं जाव णस्सइकाइया' एवं पृथिवीकायिकवदेव यावत् - अष्कायिकाः, तेजस्कायिकाः, नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार, और स्तनितकुमार ये सब भवनवासी देव तीन ज्ञानवाले तो नियम से होते हैं परन्तु भजना से कोई २ दो अज्ञानवाले होते हैं और कोई २ तीन अज्ञानवाले होते हैं । अय गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं 'पुढविकायाणं भंते ! किं नागी अन्नाणी ' हे भदन्त ! पृथिवीकायिक जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं ? 'गोयमा' हे गौतम ! 'नो नाणी, अन्नाणी' पृथिवीकायिक जीव ज्ञानी नहीं होते हैं, किन्तु अज्ञानी होते हैं । 'जे अन्नाणी ते नियमा दुअन्नाणी, मह अन्नाणी य, सुय अन्नाणो य' जो पृथिवीकायिक जीव अज्ञानी होते हैं वे नियमसे मत्यज्ञानवाले और श्रुताज्ञानवाले होते हैं। 'एवं जाव वणसह काइया' पृथिवीकायिक जीव की तरह से ही यावत्- अपकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीव भी ज्ञानी नहीं ઉદધિકુમાર, દિશાકુમાર, પવનકુમાર અને સ્તનિતકુમાર એ બધા ભવનવાસી દેવ ત્રણ જ્ઞાનવાળા નિયમથી થાય જ છે પરંતુ ભજનાથી કાઇ કોઇ એ અજ્ઞાનવાળા અને કાઇ કાઇ भए ज्ञानवाजा होय छे. अभ - पुढविक्काइयाणं भंते किं नाणी अन्नाणी' हे भगवन! पृथ्वी डामिव ज्ञानी होय छे अज्ञानी ? ७. - 'गोयमा' नो नाणी अन्नाणी' पृथ्वी अयिव ज्ञानी होता नयी अज्ञानी न होय छे. 'जे अन्नाणी ते नियमा दुअन्नाणी, मइअन्नाणीय सुयअन्नाणीय' ने पृथ्वीवि अज्ञानी होय छे ते नियमथा भत्यज्ञान भने श्रुताज्ञानवाणा होय . ' एवं जाव वणस्सइकाइया' પૃથ્વીકાયિક જીવની જેમ જ કાયિક, તેજસ્કાયિક, વાયુકાયિક અને વનસ્પતિકાયિક જીવ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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