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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ.१ मू. २ पुद्गलभेदनिरूपणम् २१ ___टीका-अथ त्रिष्वपि पुद्गलेषु प्रयोगपरणतानां नामनिर्देशेन नवदण्डकान् प्रदर्शयति-मुक्ष्मैकेन्द्रियादारभ्य सवार्थसिद्धदेवपर्यन्तं जीवानां विशेषताभिः प्रयोगपरिणतपुद्गलानां प्रथमो नामद्वारदण्डकः १। सूक्ष्मपृथिवीकायिकादारभ्य सर्वार्थसिद्धदेववपर्यन्तं पर्याप्तकापर्याप्तकभेदेन द्वितीयो भेदद्वारदण्डकः २ । औदारिकादिपञ्चशरीराणां विशेषताभिः तृतीयः शरीरद्वारदण्डकः ३। पातिक कल्पातीत वैमानिक देवपञ्चेन्द्रिय प्रयोगपरिणत पुद्गल पांच प्रकारके कहे गहें हैं । (तं जहा) जो इस प्रकार से हैं (विजय अणुत्तरोववाइया जाव परिण० जाव सव्वट्ठ सिद्ध अणुत्तरोववाइयदेव पंचिदियपओगपरिणया दंडगो) विजय अनुत्तरौपपातिक देवप्रयोगपरिणत पुद्गल यावत् सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक देव पंचेन्द्रियप्रयोग परिणत पुद्गल-दण्डक ॥ सू० १॥ टीकार्थ-प्रयोगपरिणत, मिश्रपरिणत और विस्रसापरिणत पुद्गलो में से प्रयोग परिणत पुद्गलोंके नामनिर्देशसे सूत्रकार ने नौ दण्डकों में से यहां पर नमिद्वार नामके दण्डकको दिखलाया है, नौ दण्डक इस प्रकार से हैं-मूक्ष्म एकेन्द्रिय से लेकर सर्वार्थसिद्ध देव तक जीवों की विशेषताओं से प्रयोगपरिणत पुद्गलोंका प्रथम नाम द्वार दण्डक है. सूक्ष्म पृथिवी कायिक से लेकर सर्वार्थसिद्ध देवतक पर्याप्तक अपर्याप्तकके भेद से दूसरा भेदवारदण्डक है। औदारिक आदि पांच शरीरों की विशेषताओं से तीसरा शरीरद्वारदण्डक है । AP sel छ. [तजहा] ते पाय ४२ मा प्रभारी छ- (विजय अणुत्तरोववाइय० जाव परिण० जाव सव्वट्ठ सिद्ध अणुत्तरोवाइ देव पचिदियपभोगपरिणया दंडगो) विन्य अनुत्तरोषपाति: a प्रयोगपरिणत पुलथी ने સર્વાર્થસિદ્ધ અનુત્તરૌપપાતિક દેવ પ્રયોગપરિણત પુદગલ સુધીને પાંચ પ્રકાર અહીં પ્રહણ કરવા. साथ- पुगताना र ५४२ मतावामा माया छ- (१) प्रयोगपरिणत, (૨) મિશ્રપરિણત અને (૩) વિશ્વસાપરિણત પુદગલ. આ ત્રણ પ્રકારમાંથી પ્રગપરિણત પુદગલેના નામનિર્દેશપૂર્વક સૂત્રકારે નવ દંડકમાંના નામઠાર નામના દંડકને અહીં પ્રકટ કર્યું છે. તે નવ દંડક આ પ્રમાણે છે- સૂક્ષ્મ એકેન્દ્રિયથી લઈને સર્વાર્થસિદ્ધ દેવ પર્યન્તના જીવન વિશેષતાઓથી પ્રયોગપરિણત પુલનું પ્રથમ નામઢાર દંડક છે. સમ પૃથ્વીકાયિકથી લઈને સર્વાર્થસિદ્ધ દેવ સુધીના જીવનું પર્યાપ્તક અને અપર્યાપ્તકના ભેદથી બીજું ભેદદ્વાર દંડક છે. દારિક આદિ પાંચ શરીરેની વિશેષતાઓને અનુલક્ષીને श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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