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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ.२ सू. ४ ज्ञानभेदनिरूपणम् ३१५ आभिनिवोधिकज्ञानिनः, श्रुतज्ञानिनः, अवधिज्ञानिनः, अथवा आभिनिवोधिकज्ञानिनः, श्रुतज्ञानिनः, मनःपर्यवज्ञानिनः, ये चतुर्जानिनस्ते आभिनिबोधिकज्ञानिनः, श्रुतज्ञानिनः, अवधिज्ञानिनः, मनःपर्यवज्ञानिनः, ये एकज्ञानिनः ते नियमात् केवलज्ञानिनः, ये अज्ञानिनस्ते अत्येकके व्यज्ञानिनः, अस्त्येकके व्यज्ञानिनः, ये द्वयज्ञानिनस्ते मनःपर्यवाज्ञानिनः, श्रुताज्ञानिनश्च, ये व्यज्ञानिनस्ते मनःपर्यवाज्ञानिनः, श्रुताज्ञानिनः, विभङ्गज्ञानिनः ॥ मू० ४ ज्ञानवाले हैं। (जे तिन्नाणी ते आभिणियोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी ) जो जीव तीनज्ञानवाले हैं वे मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान इन तीन ज्ञानवाले होते हैं । (अहवा आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी मणपजवनाणी) अथवा मतिज्ञान, श्रुत ज्ञान और मनःपर्यवज्ञान इन तीन ज्ञान वाले होते हैं। (जे चउनाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी मणमजवनाणी ) जो जीव चारज्ञानवाले होते हैं वे मतिज्ञान श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्यवज्ञान इन चार ज्ञानवाले होते हैं (जे एगनाणी ते नियमा केवलवाणी) और जो जीव एक ज्ञानवाले होते हैं वे नियमसे, एक ज्ञान केवलज्ञानवाले होते हैं । (जे अन्नाणी ते अत्थेगइया, दुअन्नाणी अत्थेगड्या ति अनाणी ) जो जीव अज्ञानी कहे गये हैं वे कितनेक जीव दो अज्ञानवाले होते हैं और कितनेक जीव तीन अज्ञानवाले होते हैं । (जे दु अन्नाणी ते मइ अन्नाणीय, सुयअन्नाणीय) जो दो अज्ञानवाले होते हैं, मत्यa भतीज्ञानमने श्रुतज्ञान छे. 'जे तिन्नाणी ते आभिणिवोहिय नाणी सुय नाणी ओहिनाणी' २७१ र ज्ञानवाा छ त भतिज्ञान, तगान भने भवधितानाणा 'अहवा आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी मणपज्जवनाणी' मयभतीज्ञान, श्रुतज्ञान मने मन: ज्ञान में त्रय शानामा राय छे. 'जे चउनाणी ते आभिणिबोहिय नाणी सुयनाणी ओहि नाणी मणपज्जवनाणी' 2 4 यार शानदार डाय छे त भतिजान, श्रुतज्ञान, अधिशान भने मन:पय यज्ञान से यार ज्ञानवा॥ लेाय छे. 'जे एग नाणी ते नियमा केवलनाणी, मने मे ज्ञानवाण डाय छे ते नियमथा मे ज्ञान विज्ञानवाणी खाय छे. 'जे अन्नाणी ते अत्थेगइया अन्नाणी, अत्थेगहया ति अन्नाणी' ने ७१ सशानी ४ा छे 8 साये मज्ञानवाण मन. ३८९ Y अज्ञानवारा य छे. 'जे दु अन्नाणी ते मइ अन्नाणी य सुय અનrળા ? જે બે અજ્ઞાનવાળા હોય છે તે મત્યજ્ઞાનવાળા અને કુતાણાનવાળા હોય છે श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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