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________________ sheheer भगवतीमूने कतिविधं प्रज्ञप्तम् ?, गौतम ! त्रिविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-मत्यज्ञानम्, श्रुताज्ञानम्, विभङ्गज्ञानम्, अथ किं तत् मत्यज्ञानम् ? मत्यज्ञानं चतुर्विधं प्रज्ञप्तम्, तधथा-अबग्रहो यावत् – धारणा, अथ किं स: अवग्रहः ? ? अवग्रहो द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-अर्थावग्रहश्च, व्यञ्जनावग्रहश्च, एवं यथैव आभिनिबोधिकज्ञानं तथैव, नवरम्-एकार्थिकवर्नम् यावत् - नोइन्द्रियधारणा, सैषा धारणा, तदेतत् 'सेतं केवलनाणे' इस पाठतक । (अन्नाणे णं भंते ! कहविहे पण्णत्ते) हे भदन्त ! अज्ञान कितने प्रकारका कहा गया है ? (गोयमा) हे गौतम ! (तिविहे पण्णत्ते) अज्ञान तीन प्रकारका कहा गया है। (तंजहा ) जैसे (मइ अन्नाणे, सुय अन्नाणे, विभंगनाणे) मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान, विभंगज्ञान (से किं त्मइ अन्नाणे) हे भदन्त !मत्यज्ञान कितने प्रकारका कहा गया है ? ( मइ अन्नाणे चउबिहे पण्णत्ते ) हे गौतम ! मत्यज्ञान चार प्रकारका कहा गया है (तंजहा) जो इस प्रकार है (उग्गहो जाव धारणा) अवग्रह यावत् धारणा (से किं तं उग्गहे) हे भदन्त ! अवग्रह कितने प्रकारका है ? (उग्गहे दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! अवग्रह दो प्रकारका है (तंजहा) जो इस प्रकारसे है (अत्थोग्गहे वंजणोग्गहे य) एक अर्थावग्रह दुसरा व्यजनावग्रह (एवं जहेव आभिणिबोहियनाणं तहेव) इस तरहसे जैसा कि नंदीसूत्र में आभिनिबोधिक ज्ञानके संबंधमें कहा गया है उसी तरहसे यहांपर डेसा छ ते ४ रीते 24641 पY स० वा. यात- 'सेतं केवलनाणे' से पा४ सुधीना मेह! सभ७ वा. 'अनाणे णं भंते काविहे पन्नत्ते भगवान! मज्ञान 2al stu छ ? 'गोयमा' हे गीत ! 'तिविहे पन्नत्ते मज्ञान ! ४२ना 33 . 'तजहा' ते २मा प्रभारे छ. 'मइ अन्नाणे, सुय अन्नाणे, विभंगनाणे भत्यजान १, शुतावान २, भने विमान 3. 'से कितं मइ अन्नाणे' मान भत्यज्ञान seen t२र्नु ४३ छ ? 'मइ अन्नाणे चउबिहे पण्णत्ते' हे गौतम ! भत्यज्ञान यार प्रा२र्नु ४८ छ. 'तजहा' या प्रमाणे छे.-'उग्गहो जाव धारणा' यावत धा२९५ (से किं तं उग्गहे) हे भगवान अप टा ना? 'उग्गहे दुविहे पण्णत्ते गौतम ! ११ मे २॥ छ. (तंजहा) मा प्रभारी छे-'अत्थोग्गहे बंजणोग्गहे य मे सविड भने मी व्यनवड. एवं जहेव आभिनिबोहियनाणं तहेव' की शते नदीसूत्रमा मालिनिवाधिसानना विषयमा छे ते शत माडी ५ सभा. नवरं एगट्टियवज्ज जाव नो इंदिय धारणा, सेत्तं धारणा, सेत्तं मइ अन्नाणे' यतु विशेषता श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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