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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ.१ सू. २ पुद्गलभेदनिरूपणम् १७ निकमयोगपरिणताः, गर्भव्युत्क्रान्तिकचतुष्पदस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकप्रयोगपरिणताश्च । एवम् एतेन अभिलापेन परिसर्पा द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-उर परिसश्चि, भुजपरिसाश्च । उरःमतिसर्या द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-संमूच्छिमा श्च गर्भव्युत्क्रान्तिकाश्च । एवं भुजपरिसा अपि । एवं खेचरा अपि । मनुष्यपञ्चेन्द्रियप्रयोग पृच्छा ? गौतम ! द्विविधाः से हैं । (समुच्छिमचउप्पय थलयर०, गम्भवक्कं तियचउप्पय थलचर०) संमूच्छिम चतुष्पद स्थलचरपंचेन्द्रिय तिर्य च पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गल और गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्य च प्रयोग परिणत पुद्गल (एवं एएणं अभिलावेणं परिसप्पा दुविहा पण्णत्ता) इसी प्रकारसे इस अभिलाप द्वारा परिसर्प दो प्रकारके कहे गये हैं। (तंजहा) जो इस प्रकारसे हैं (उरपरिसप्पा य भुयारसप्पा य) उरःपरिसर्प और भुजपरिसर्प (उरपरिसप्पा दुविहा पण्णत्ता) उरःपरिसर्प दो प्रकारके कहे गये हैं (तंजहा) जो इस प्रकारसे हैं (समुच्छिमाय गम्भवक्कंतियाय) संमूच्छिम और गर्भज (एवं भुयपरिसप्पा वि, एवं खयरावि) इसी तरहसे भुजपरिसर्प भी और खेचर भी दो प्रकारके कहे गये हैं । (मणुस्स पंचिंदियपओग पुच्छा) हे भदन्त ! मनुष्य पंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गल कितने प्रकारके कहे गये हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (दुविहा पण्णत्ता) मनुष्य पंचेन्द्रिय प्रयोग परिणत पुद्गल (समुच्छिमचउप्पय थलयर०, गम्भवक्कंतियचउप्पय थलचर०) (१) भूमि ચતુષ્પદ સ્થલચર તિર્યંચ પંચેન્દ્રિય પ્રગપરિણત પુદ્ગલ અને (૨) ગર્ભજ ચતુષ્પદ स्यलय तिय य पश्यन्द्रिय प्रयोगपरिणत पुरा. (एवं एएणं अभिलावेणं परिसप्पा दुविहा पण्णत्ता) मे ॥ १२ना 22 मलिता५६२। परिसपान पारे प्र२ प्रत्या छे. (तजहा) ते मे ५४।२। नीये प्रमाणे छे- (उरपरिसप्पाय, भुयचरिसप्पा य) (१) ७२: परिस, मने (२) सु४ परिस५ (उरपरिसप्पा दुविहा पणत्ता-तंजहा) २. परिसना नीव्ये प्रभारी के प्रा२ ४त्या छ- (संमच्छिमा य, गम्भवक्कतिया य) (१) सभूमिछम भने (२) . ( एवं भुयपरिसप्पा चि, एवं खहयरा वि એ જ પ્રમાણે ભુજ પરિસર્પના પણ બે પ્રકાર કહ્યાં છે અને ખેચરના પણ બે પ્રકાર કહ્યા છે. (मणुस्स पंचिंदियपओग पुच्छा०) हेमन्त ! मनुष्य पयेन्द्रिय प्रयासपरिणत YEra zear ॥२ना या छ ? (गोयमा !) 3 गौतम! (दविहा पण्णत्ता-तंजहा) मनुष्य पयन्द्रिय प्रयोगपरिणत पुराना नीय प्रमाणे मे २ या छ- (संमुच्छिम श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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