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________________ ममेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ.१ भू. २४ सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् २५९ पुद्गलेभ्यो यावत्-अल्पा चा, बहुका बा, तुल्या वा, विशेषाधिका वा भवन्ति ? भगवानाह- 'गोयमा ! सनत्थोवा पोग्गला पओगपरिणया' हे गौतम ! सर्वस्तोकाः सर्वेभ्योऽल्पाः पुद्गलाः कायादिरूपतया प्रयोगपरिणता भवन्ति, जीवपुद्गलसम्बन्धकालस्य स्तोकत्वात्, किन्तु ' मीसापरिणया अणंतगुणा, वीससापरिणया अणन्तगुणा ' कायादिप्रयोगपरिणतपुद्गलापेक्षया मिश्रक. परिणताः पुद्गला अनन्तगुण भवन्ति, प्रयोगपरिणामितमाकारमपरित्यजतां विस्रसया परिणामान्तरमुपागतानां कलेवराद्ययवरूपाणामनन्तानन्तत्वात, विसापरिणतास्तु मिश्रपरिणतापेक्षयाऽपि अनन्तगुणा भवन्ति, वित्रसापरिणत पुद्गलोंमें कौन रसे पुद्गल किन२ पुद्गलोंसे अल्प हैं १, कौन रसे पुद्गल किन रपुद्गलोंसे बहुत हैं १, कौन २ से पुद्गल किनर पुद्गलोंके बराबर हैं १ और कौनरसे पुद्गल किनर पुद्गलोंसे विशेषाधिक हैं उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'सव्वत्थो वा पोग्गला पओगपरिणया' सबसे कम पुद्गल प्रयोगपरिणत हैं अर्थात् कायादिरूपसे परिणत हुए जो पुद्गल हैं वे सबसे कम हैं क्योंकि जीव और पुद्गलके सम्बन्धका ज काल है वह कम है । किन्तु 'मीसापरिणया अणतगुणा वीससापरिणया अणंतगुणा' कायादिरूपसे परिणत हुए पुद्गलोंकी अपेक्षा मिश्रपरिणत पुद्गल अनन्तगुणे हैं, क्योंकि प्रयोगद्वारा परिणामित हुए आकारको नहीं छोडने वाले तथा स्वभावसे परिणामान्तरको प्राप्त हुए ऐसे मृतकलेवरादिरूप पुद्गल अनन्तानन्त हैं। तथा मिश्रपरिणत पुद्गलोंकी अपेक्षा भी विससापरिणत पुद्गल अनन्तगुणे हैं । क्योंकि जीवके द्वारा ग्रहणके પુદગલો કયા કયા પુદ્ગલથી અ૯પ છે? અને કયા કયા પુદ્ગલ કયા કયા પુદગલેથી વિશેષ છે? કયા કયા પુલ કયા કયા પુદ્ગલેની સમાન (સરખા) છે. અને કયા पुदगल या ४या पुगसोयी विशेषाधि छ. उत्तर- 'गोयमा गौतम ! सम्वत्थोवा पोग्गला- पओगपरिणया' माथी छमा छ। पुरा प्रयोग परिणत छ. અર્થાત્ કાયાદિ રૂપથી પરિણત થળેલ જે પુદગલ છે તે બધાથી ઓછા છે કેમકે જીવ भने पुराना सांधने छ ते माछ। छे. तु मीसा परिणया अनंतगुणा वीससा परिणया अनंतगुणा' या ३५था परिणत येत नसोनी अपेक्षाये, મિશ્રપુદ્ગલ અનંતગણુ છે કેમકે પ્રયોગ દ્વારા પરિણમિત થયેલ આકારને નહીં છોડવાવાળા તથા સ્વભાવથી પરિણામાન્તરને પ્રાપ્ત થયેલ એવા મૃતશરીરાદિ રૂપથી અનંતાનંત છે, તથા મિશ્રપરિણી રૂપની અપેક્ષાએ વિસ્ત્રસા પરિણત પુણલ અનંતગણું છે. કેમકે श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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